पर्यावरणीय शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा। by आलोक वर्मा

शिक्षा और पर्यावरणीय शिक्षा.      By आलोक वर्मा

( Education and Environmental Education )

पर्यावरणीय शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा

पर्यावरण एवं व्यापक सम्प्रत्यय है । मनुष्य जिस प्राकतिक , सामाजिक , सांस्कृतिक , धार्मिक , राजनैतिक एवं स्थातया में रहता है , वह सब उसका पर्यावरण होता है । परन्तु पर्यावरणीय शिक्षा केवल उसके प्राकृतिक पयावरण तक का जानकारी तक सीमित होती है , यह बात दूसरी है कि इसके अन्तर्गत उसके प्राकृतिक पर्यावरण के उसके सामाजिक , सांस्कृतिक , धार्मिक , राजनैतिक और आर्थिक पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन किया जाता है ।

वैज्ञानिक आविष्कारों ने उसकी भौतिक आवश्यकताएँ और अधिक बढ़ा दी हैं । इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है । अब संसार भर में इस बात की चिन्ता उत्पन्न हो गई है कि कहीं ये प्राकृतिक संसाधन समाप्त न हो जाएँ और आगे आने वाली पीढ़ी इनसे वंचित न हो जाए । अत : इसके संरक्षण के लिए प्रयत्न किए जा रहे हैं । दूसरी तरफ औद्योगीकरण के कारण वायु और जल प्रदूषित हो रहे हैं । परिणाम यह है कि मनुष्यों को जीने के लिए शुद्ध वायु एवं शुद्ध जल उपलब्ध नहीं है । अत : प्रदूषण को भी रोकने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं । इन प्रयत्नों में एक प्रयत्न पर्यावरणीय शिक्षा है । अमरीका के पर्यावरणीय शिक्षा अधिनियम , 1970 में पर्यावरणीय शिक्षा को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया गया है -----

पर्यावरणीय शिक्षा वह शैक्षिक प्रक्रिया है जो मानव को उसके प्राकृतिक एवं मानव निर्मित वातावरण के सम्बन्धों का ज्ञान कराती है । इसमें जनसंख्या , प्रदूषण , संसाधनों का विनियोग , संरक्षण , यातायात , तकनीकी और नगरीय तथा ग्रामीण नियोजन का मनुष्य के सम्पूर्ण पर्यावरण से सम्बन्ध भी निहित है । लेकिन देश में पर्यावरणीय शिक्षा के दो पहल हैं — एक प्राकृतिक संसाधनों और उनके संरक्षण का ज्ञान और दूसरा प्राकृतिक पर्यावरण और उसे दूषित होने से बचाने के उपायों का ज्ञान । इस शिक्षा के उद्देश्य और पाठ्यक्रम की दृष्टि से इसे निम्नलिखित रूप में परिभाषित करना चाहिए

पर्यावरणीय शिक्षा वह शिक्षा है जिसके द्वारा बच्चों , युवकों और प्रौढों को प्राकतिक संसाधनों के दोहन और प्रकति प्रदूषण के कारणों और उनके दुष्परिणामों से परिचित कराया जाता है और साथ ही उन्हें प्राकृतिक संसाधनो के संरक्षण और प्रकृति प्रदूषण की रोकथामा की विधियाँ बताई जाती हैं ।

यहाँ यह बात समझ लेनी चाहिए कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण का अर्थ उनके प्रयोग को समाप्त करने से नहीं है अपित व्यक्तियों को उनके विवेकपूर्ण उपयोग की शिक्षा देने से है जिससे उनका लाभ अधिक से आधिक तक व्यक्तियों को हो सके । और प्रकति प्रदूषण का अर्थ प्राकतिक कारणों द्वारा हान बाल प्रदषण एवं मनुष्य के द्वारा किए जाने वाले प्रदूषण दोनों से है । प्रदषण किसी कारण से हो . उसको समाप्त करना आवश्यक है ।

पर्यावरणीय शिक्षा के उद्देश्य

पर्यावरणीय शिक्षा का मूल उद्देश्य है , प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को रोकना और प्राकति प्रदूषित होने से बचाना । इस उद्देश्य को निम्नलिखित रूप में विस्तृत किया गया है

  1. बच्चों , युवकों और प्रौढ़ों को प्राकृतिक संसाधनों और प्राकृतिक पर्यावरण का ज्ञान कराना
  2. उन्हें प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और प्राकृतिक पर्यावरण के प्रदूषित होने के दुष्परिणामों का ज्ञान ।
  3. उन्हें प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और प्राकृतिक पर्यावरण के प्रदूषित होने के कारणों का ज्ञान
  4. उन्हें प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और प्राकृतिक पर्यावरण के प्रदूषित होने से बचाने के उपाय कराना और उनके अनुपालन की ओर प्रवृत्त करना ।
  5. उनमें प्राकृतिक असन्तुलन और प्रदूषण की रोकथाम के प्रति अभिवृत्ति का विकास करना ।
  6. उनमें सफाई के प्रति अभिवृत्ति का विकास करना ।
  7. उनमें जनहित की अभिवृत्ति का विकास करना ।

यही नहीं बल्कि पर्यावरण शिक्षा एक व्यापक तथा एकीकृत शिक्षा प्रयास है जिसमें व्यवहार परिशोधन के तीनों ही पक्ष - ज्ञानात्मक पक्ष , भावात्मक पक्ष तथा क्रियात्मक पक्ष समाहित रहते हैं । पर्यावरण शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य विश्व । जनसंख्या को पर्यावरण तथा उससे सम्बन्धित समस्याओं के प्रति सजग व करियाशील करना है जिससे वे पर्यावरण । संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता ( Commitment ) की भावान का विकास करके इस दिशा में यथासम्भव प्रयास कर सकें । । पर्यावरण शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों को अगआरंकित ढंग से लिखा जा सकता है ।

1 . पर्यावरण के प्रति जागरुकता - पर्यारवण शिक्षा का प्रथम उद्देश्य सभी को पर्यावरण के प्रति जागरुकता तथा संवेदनशील बनाना है । सभी व्यक्तियों तथा सामाजिक समूहों को समग्र पर्यावरण तथा उसकी समस्याओं के प्रति संवेदनशील तथा जागरुक बनाने में सहायता करना पर्यावरण शिक्षा का पहला कदम होगा ।

2 . पर्यावरण का ज्ञान - पर्यावरण शिक्षा का दूसरा उद्देश्य सभी को पर्यावरण के सम्बन्ध में जानकारी कराना । है । अत : व्यक्तियों तथा सामाजिक समूहों को पर्यावरण , उसमें होने वाले परिवर्तन तथा इन परिवर्तनों के फलस्वरूप । आने वाली समस्याओं क आज्ञान कराना ही पर्यावरण शिक्षा का दूसरा उद्देश्य है ।

3 . पर्यावरण के प्रति अभिवृत्ति - पर्यावरण शिक्षा का एक अन्य उद्देश्य जनसाधारण में पर्यावरण तथा उसके । संरक्षण के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना है । इसके लिए व्यक्तियों तथा सामाजिक समूहों में पर्यावरण । सम्बन्धी सामाजिक मूल्यों , पर्यावरण के प्रति सद्भावना तथा पर्यावरण संरक्षण व उसमें सुधार के लिए अभिप्रेरणा को विकसित करना चाहिए ।

4 . पर्यावरण सुधार में सहभागिता - पर्यावरण शिक्षा को जनसाधारण में पर्यावरण संबंधी समस्याओं के समाधान । में अपनी सक्रिय भागीदारी तथा उत्तरदायित्व का बोध कराना भी निहित है । इसके लिए व्यक्तियों तथा सामाजिक समूही में पर्यावरण के प्रति उत्तरदायित्व की भावना विकसित करनी होगी तथा पर्यावरण प्रदूषण को रोकने व पर्यावरण सुधार । की दिशा में उपयुक्त कदम उठाने के लिए तत्पर बनाना होगा । ।

5 . पर्यावरण सुधार का कौशल - पर्यावरण संबंधी समस्याओं का समाधान करने के लिए पयावरण सभा व उसमें सुधार करने की निपुणता को भी विकसित करना पर्यावरण शिक्षा का एक प्रमख उद्देश्य है । व्यक्तियों तथा । सामाजिक समूहों में पर्यावरण संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक कौशलों से युक्त करना होगा ।

6 . पर्यावरण मूल्यांकन - पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य पर्यावरण तथा उसमें सुधार हेतु किये जाने वाले प्रयासा का मूल्याकन करने की क्षमता विकसित करना भी है । पर्यावरण शिक्षा को व्यक्तियों तथा सामाजिक समूहों में पर्यावरण तत्वा , परिस्थिति के संतुलन तथा पर्यावरण संरक्षण व सुधार की दिशा में किये जाने वाले प्रयासों का मूल्यांकन सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक , सौंदर्यमूलक तथा शैक्षिक कारकों के संदर्भ में करने की योग्यता विकसित करने में सहायता प्रदान करनी चाहिए । जानात्मक , भावात्मक तथा क्रियात्मक पक्षों से सम्बन्धित पर्यावरण शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों का चित्र मशाल किया गया है ।

पर्यावरणीय शिक्षा का पाठ्यक्रम

पर्यावरणीय शिक्षा के पाठ्यक्रम पर विद्वान , विशेषकर शिक्षाविद् एकमत नहीं है , किन्तु अब तक देश - विदेश में इसके जो सामान्य पाठ्यक्रम तैयार किए गए हैं , उनमें मुख्य तत्व निम्नलिखित है

1 . प्राकृतिक सम्पदा और प्राकृतिक पर्यावरण की जानकारी , मानव जीवन में प्राकृतिक सम्पदा और शुद्ध प्राकृतिक पर्यावरण की उपयोगिता । ।

2 . प्राकृतिक सम्पदा के दोहन से होने वाले दुष्परिणामों की जानकारी - वनों के दोहन ( कटने ) से वनों से उपलब्ध होने वाली सामग्री कम हो रही है , पारिस्थितिकीय ( Ecological ) सन्तुलन बिगड़ रहा है , वायु प्रदूषित हो रही है , वर्षा की कमी हो रही है और मिट्टी का कटाव बढ़ रहा है ।

3 . प्राकृतिक पर्यावरण के प्रदूषित होने के दुष्परिणामों की जानकारी

( i ) सुद्ध पेयजल और शुद्ध वायु की कमी ।

( ii ) शुद्ध खाद्य पदार्थों के उत्पादन में बाधा । । .

( iii ) उचित पोषण और स्वास्थ्य विकास में बाधा ।

4. प्राकृतिक सम्पदा के दोहन के कारणों की जानकारी ।

  • ( i ) वैज्ञानिक आविष्कार ।
  • ( ii ) बढ़ती हुई भौतिक आवश्यकताएँ ।
  • ( iii ) अनावश्यक प्रयोग ।
  • ( iv ) बढ़ती हुई जनसंख्या ।

5. प्राकृतिक पर्यावरण के प्रदूषित होने के कारणों की जानकारी ।

  • ( i ) वनों का कटना ।
  • ( ii ) औद्योगीकरण ।
  • ( iii ) तेल से चलने वाले वाहन ।
  • ( iv ) रासायनिक पदार्थों का प्रयोग ।
  • ( v ) बढ़ती हुई जनसंख्या ।

6. प्राकृतिक सम्पदा के संरक्षण के उपायों की जानकारी ।

  • ( i ) वनों में जितने पेड़ काटे जाएँ , वहाँ उससे अधिक पेड़ लगाए जाएं ।
  • ( ii ) खनिजों का प्रयोग विवेकपूर्ण ढंग से किया जाए । इनके विकल्प के रूप में प्लास्टिक क _ को बढ़ावा दिया जाए ।
  • ( iii ) ईंधन खनिजों का कार्य सूर्य ऊर्जा से लिया जाए ।
  • ( iv ) वर्षा के पानी को बाँधों , झीलों और तालाबों में संग्रहीत किया जाए ।
  • ( v ) जल का दुरुपयोग न किया जाए ।

7 . प्राकृतिक पर्यावरण को प्रदषित होने से बचाने के उपायों की जानकारी ।

  • ( i ) वनों को न काटा जाए एवं वृक्षारोपण किया जाए ।
  • ( ii ) उद्योगों से निकलने वाले धुएँ और विषैली गैसों को वैज्ञानिक विधियों से कम किया जाए , उन्हें अप्रभावी कर वायु को प्रदूषित होने से बचाया जाए ।
  • ( iii ) उद्योगों से निकलने वाले जहरीले पदार्थों , ग्राम व नगरों के गन्दे पानी और कचरे और मरे हुए जीव जन्तुओं को नदियों में न पहाया जाए और जल प्रदूषण को रोका जाए , झीलों तालाबों और कुओं के पानी को रासायनिक विधियों द्वारा शुद्ध किया जाए ।
  • ( iv ) तेल से चलने वाले वाहनों को प्रदूषण मुक्य किया जाए और वायु प्रदूषण से रोका जाए ।
  • ( v ) जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण किया जाए ।

पर्यावरणीय शिक्षा के साधन

पर्यावरणीय शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली शिक्षा है । आज पूरे संसार में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और प्राकृतिक पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करने की नई - नई सामान्य और वैज्ञानिक विधियों की खोज की जा रही है , मनुष्यों को उनकी लगातार जानकारी देना आवश्यक है । भारत में पर्यावरणीय शिक्षा के मुख्य माध्यम है — औपचारिक सिक्षा , निरौपचारिक शिक्षा , अनौपचारिक शिक्षा , प्रौढ़ शिक्षा , जनसंचार के माध्यम और स्वैच्छिक संस्थाएँ ।

पर्यावरणीय शिक्षा का महत्व एवं आवश्यकता

आज विज्ञान के बढ़ते हुए चरण , औद्योगिक और बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण संसार भर में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हो रहा है , पारिस्थितिकीय असन्तुलन बढ़ रहा है और प्राकृतिक प्रदूषण बढ़ रहा है । इसकी रोकथाम के लिए जहाँ एक ओर सरकारी नियम एवं कानून बनाए जा रहे हैं , वहाँ दूसरी ओर लोगों को इसके प्रति जागरुक करने के लिए पर्यावरणीय शिक्षा का सहारा लिया जा रहा है । सच बात यह है कि सारे कार्य सरकारी नियम और कानूनों से सम्भव नहीं होते , उसके लिए जनजागरण भी जरूरी होता है और इस कार्य में शिक्षा एक अहम् भूमिका निभाती है । आज के सन्दर्भ में पर्यावरणीय शिक्षा का बड़ा महत्व है , उसकी बड़ी आवश्यकता है |

1 . प्राकृतिक सम्पदा के संरक्षण के लिए - हम देख रहे हैं कि मनुष्य अपनी भौतिक आवश्यकताओं की । पर्ति के लिए प्राकृतिक सम्पदा का बड़ी तेजी से दोहन कर रहा है और यदि यही गळा पबी को बमापी भावी पीढ़ी | के लिए कुछ भी प्राकृतिक सम्पदा शेष नहीं रहेगी । मनुष्यों को प्राकृतिक सम्पदा के सीमित प्रयोग की ओर अग्रसर करने और उसे भावी पीढ़ियों के लिए बचाने रखने के लिए पर्यावरणीय शिक्षा का बड़ा महत्व है . उसकी बड़ी आवश्यकता

2. प्रकति प्रदूषण की रोकथाम के लिए - आज संसार में वनों के काटने औद्योगिक संस्थानों को चलान । रहती हई जनसंख्या क कारण गन्दगा फलने से हमारा प्राकतिक पर्यावरण - जल वाय मिट्टी आदि सभा प्रदूष है । इस प्रदषण की रोकथाम क लिए पर्यावरणीय शिक्षा का बड़ा महत्व है ।

3. बच्चों के उचित पोषण और स्वास्थ्य विकास के लिए - मनष्य को जीने के लिए शुद्ध पाके र्य का प्रकाश और खाद्यान्न का आवश्यकता होती है । स्पष्ट है कि बच्चों के जित गोषण और स्वास्थ्य विकास की दृश्टि से पर्यावरण का बड़ा महत्व है।

4 . जन कल्याण और आर्थिक प्रणाली की रक्षा के लिए - आज अधिकतर मनुष्य केवल अपने स्वार्थ पारा साचत ह , जनहित और जन कल्याण की नहीं । और बडेमजे की बात यह है कि इस स्वार्थ की आँधी में व अपना भी अहित कर बैठते है । वे नहीं सोच पाते कि उनके कारण प्राकृतिक ससाधन कम हो रहे हैं , जिससे आगे चलकर अर्थव्यवस्था ही चरमरा जाएगी । तब कहना न होगा कि जनकल्याण आर आथिक प्रणाला का लम्बे समय तक बनाए रखने के लिए पर्यावरणीय शिक्षा का बड़ा महत्व है ।

भारत में पर्यावरणीय शिक्षा का विकास

भारतीय तो अति प्राचीन काल से प्राकतिक पर्यावरण के प्रति बड़े सचेत रहे हैं । वैदिक ऋचाओं में प्रकृति के गुणों का बखान और उसकी दैवीय रूप में प्रार्थना की गई है । वैदिक काल में वनस्पतियों को ईश्वर की अद्वितीय देन माना जाता था और पेड - पौधों को काटना जीव हत्या माना जाता था । इतना हा नहा आपतु नादया के जल में । मल विसर्जन करने का निषेध था , वायु को दृषित करने का निषेध था । नित्य हवनों का विधान वायु , मन और आत्मा को शुद्ध करने के इले ही किया गया था । पर जैसे - जैसे देश की जनसंख्या बढ़ती गई और भौतिकवादी सभ्यता बढ़ती गई तैसे - तैसे हम प्रकृति की रक्षा के स्थान पर उसका दोहन करने लगे , उसे शुद्ध रखने के स्थान पर उसे प्रदूषित करने लगे ।

हमारे देश में जहाँ तक प्राकृतिक सम्पदा के संरक्षण और प्रकृति को प्रदूषण से बचाने की बात है । इसके लिए 1986 में पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम ( Environmental Protection Act ) बनाया गया । इस समय हमारे देश में पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण प्रदषण नियन्त्रण से सम्बन्धित अनेक योजनाएँ चल रही हैं जिन्हें केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकारें केन्द्रीय तथा प्रान्तीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्डो के माध्यम से चला रही हैं । इन कार्यक्रमों को संचालन में अनेक संस्थाओं - भारतीय वानिकी अनसन्धान एवं सरक्षा परिषद , भारतीय वन्य जीवन संस्थान भारीय बसम्पति बारतीय जन्तु सर्वेक्षण संस्थान आदि का बड़ा सहयोग है । और जहाँ तक स्कूलों में पर्यावरणीय शिक्षा का प्रश्न है , हमारे देश में इस विषय पर सर्वप्रथम 1981 में भारतीय पर्यावरण संस्थान , नई दिल्ली ने एक पुस्तक प्रकाशित की । इस पुस्तक में पर्यावरणीय शिक्षा के सम्बन्ध में जो सुझाव दिए गए हैं उनमें मुख्य सुझाव निम्नलिखित हैं

( 1 ) पर्यावरणीय शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जिससे छात्रों में पर्यावरण के प्रति चेतना जागृत हो ।

( 2 ) पर्यावरणीय शिक्षा ऐसी हो जिससे मनुष्य यह अनुभऽ करें कि वे स्वयं प्रकृति का एक अंग हैं ।

( 3 ) पर्यावरणीय शिक्षा ऐसी हो जो नागरिकों को पर्यावरण सम्बन्धी राष्ट्रीय नीति , नियम एवं कानूनों की जानकारी

( 4 ) शिक्षा के विभिन्न स्तरों के लिए विभिन्न पाठ्यक्रम बनाए जाएँ प्राथमिक स्तर पर केवल स्थानीय पर्यावरण का ज्ञान कराया जाए , माध्यमिक स्तर पर पर्यावरण और मानव के सम्बन्धों को स्पष्ट किया जाए और उच्च स्तर पर पर्यावरण सम्बन्धी विशिष्ट ज्ञान एवं प्रशिक्षण दिया जाए ।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति , 1986 में पर्यावरणीय शिक्षा के महत्व को स्वीकार किया गया और शिक्षा के हर पर प्राथमिक , माध्यमिक और उच्च शिक्षा में उसकी व्यवस्था की घोषणा की गई । इसके लिए स्कली पाठ्यक्रम । निर्माण का उत्तरदायित्व एन . सा . ई . आर . टा . का और उच्च स्तर के पाठयक्रम के निर्माण का उत्तरदायित्व इच्छुक विश्वविद्यालयों को सौंपा गया । एन . सी . ई . आर . टी . ने प्राथमि और माध्यमिक स्तर की शिक्षा के लिए पर्यावरणीय शिक्षा के पाठयक्रम तैयार किए आर साथ हा तत्सम्बन्धी पाठ्यपुस्तकें और निर्देशन सामयी तैयार की । 1988 - 89 में कन्द्र दारा ' स्कली शिक्षा का पयावरणाय स्वरूप प्रदान करना ' योजना शरू की गई । कळ विश्वविद्यालयों ने पर्यावरण विज्ञान को स्नातक स्तर के एक विषय और परास्नातक के एक सम्पूर्ण पाठ्यक्रम के रूप में शुरू किया है । जनसाधारण को पर्यावरणीय शिक्षा जनसंचार के माध्यमों से दी जा रही है ।

भारत में पर्यावरणीय शिक्षा की समस्याएँ एवं उनके समाधान

पर्यावरण की समस्या विश्व की समस्या है । भारत के लिए यह समस्या और भी अधिक भयंकर है क्योंकि यहा का जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है । इस समस्या के समाधान के लिए ही पर्यावरणीय शिक्षा का विधान किया गया है । यूँ तो हमारे देश में इसे प्राथमिक शिक्षा में अनिवार्य विषय के रूप में शुरू किया जा चुका है , परन्तु अभी भा विद्वान इस विषय में एकमत नहीं हैं कि इस शिक्षा की विषय - सामग्री क्या हो , इसे कब शुरू किया जाए और यह शिक्षा कैसे दी जाए । भारत में पर्यावरणीय शिक्षा की ये ही मूलभूत समस्याएँ हैं ।

( ii ) पर्यावरणीय शिक्षा की विषय - सामग्री की समस्या

समस्या का स्वरूप - प्रथमत : तो विद्वान इसी विषय में एकमत नहीं हैं कि इसे स्कूली पाठ्यचर्या का एक अलग विषय बनाया जाए अथवा इसे अन्य विषयों - भाषा , भूगोल , अर्थशास्त्र एवं विज्ञान के साथ जोड़कर पढ़ाया जाए । दूसरे हमारे देश में एन . सी . आर . टी . ने पर्यावरणीय शिक्षा का जो पाठ्यक्रम बनाया है , वह अति विस्तृत है , उससे अधिकतर शिक्षाविद् असहमत हैं ।

समस्या के कारण - इस समस्या के निम्नलिखित कारण हैं

( 1 ) एन . सी . ई . आर . टी . ने पर्यावरणीय शिक्षा का जो पाठ्यक्रम बनाया है , वह अति विस्तृत है ।

( 2 ) प्राथमिक स्तर के लिए जो पाठ्यक्रम बनाया गया है उसे इस स्तर के बच्चे समझने में असमर्थ हैं ।

( 3 ) एन . सी . ई . आर . टी . का कार्य तो सरकार की नीतियों के अनुपालन में लम्बे - चौड़े कार्यक्रम बनाना है , वहाँ बैठे विद्वान बच्चों के मानसिक स्तर को सामने रखने के स्थान पर सरकार के निर्णयों को सामने रखते हैं ।

समस्या का समाधान - हमारी सम्मति में इस समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए

( 1 ) पर्यावरणीय शिक्षा को स्कूली शिक्षा का अलग से विषय न बनाया जाए , इसे भाषा , भूगोल , अर्थशास्त्र और विज्ञान विषयों के साथ जोड़ा जाए ।

( 2 ) किसी भी विषय के साथ पर्यावरण से सम्बन्धित विषय - सामग्री को इस प्रकार जोड़ा जाए कि उस विषय । का मूलरूप प्रभावित न हो ।

( 3 ) उच्च शिक्षा स्तर पर इसे एक विशिष्ट पर ऐच्छिक विषय के रूप में पढ़ाया जाए और इसका विस्तृत । पाठयक्रम तैयार किया जाए जिसमे प्रदूषण कम करने की वैज्ञानिक विधियाँ भी शामिल हों ।

( iii ) पर्यावरणीय शिक्षा कब शुरू करने की समस्या

समस्या का स्वरूप - कुछ विद्वान इसे प्राथमिक स्तर से शुरू करना चाहते हैं , कुछ माध्यमिक स्तर से और । मत है कि इसे स्कूली शिक्षा का अंग बनाने की कोई आवश्यकता नहीं , इसे जनचेतना के रूप में जागृत । करना चाहिए ।

समस्या के कारण - इस समस्या के निम्नलिखित कारण है

( 1 ) मनोवैज्ञानिकों का मत है कि किसी भी प्रकार के ज्ञान और अभिवृत्ति के विकास के लिए बाल्यकाल सबसे अधिक उपयुक्त काल है ।

( 2 ) दूसरी तरफ विद्वानों का तर्क है कि प्राथमिक स्तर के बच्चे इसकी विषय - सामग्री को समझने योग्य नहीं होते , अत : इसकी शिक्षा की शुरुआत माध्यमिक स्तर पर की जाए ।

( 3 ) कुछ लोगों का यह भी तर्क है कि इसके ज्ञान की आवश्यकता नहीं , इसकी रोकथाम की आवश्यकता _ _ है जो सरकारी नियम एवं कानून द्वारा ही सम्भव है ।

समस्या का समाधान - हमारी सम्मति में इस समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित उपाए किए जाने चाहिए

( 1 ) पर्यावरण का सम्बन्ध मनुष्य के जीवन से होता है , पैदा होते ही वह पर्यावरण के सम्पर्क में आता है , अत : इसका ज्ञान उसे प्रारम्भ से ही करना चाहिए और इस दृष्टि से इसकी शिक्षा प्राथमिक स्तर से ही शुरू की जानी चाहिए ।

( 2 ) प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम में पर्यावरण सम्बन्धी सामान्य जानकारी अवश्य दी जाए , उन्हें पर्यावरण प्रदूषण के दुष्परिणामों से सचेत किया जाए और साथ ही , पर्यावरण सुरक्षा की ओर अग्रसर किया जाए ।

( iii ) पर्यावरणीय शिक्षा कैसे दी जाए की समस्या

समस्या का स्वरूप - कुछ विद्वान इसे अन्य स्कूली विषयों की तरह पढ़ाने के पक्ष में हैं और कुछ विद्वान इसे जनचेतना के रूप में जागृत करने के पक्ष में हैं । एन . सी . ई . आर . टी . ने तो पर्यावरणीय शिक्षा की विषय सामग्री और उसके शिक्षण की विधियों का अलग से विकास किया है ।

समस्या के कारण - इस समस्या के निम्नलिखित कारण हैं

( 1 ) प्रौढ़ शिक्षा के लिए अनेक उत्तम शिक्षण विधियों का विकास हो चुका है , प्रौढ़ों को उन्हीं विधियों से पर्यावरणीय शिक्षा सम्बन्धी सामान्य जानकारी दी जाए ।

( 2 ) आज सभी साक्षर एवं निरक्षर टेलीविजन देखते हैं , अत : टेलीविजन द्वारा इसकी शिक्षा दी जाए । साक्षर लोग तो समाचार पत्र - पत्रिकाएँ भी पढ़ते हैं , अत : इस माध्यम का भी प्रयोग किया जाए ।

( 3 ) इस समय देश में शिक्षा के क्षेत्र में अनेक नारे बुलन्द हैं — मूल्य शिक्षा का , जनसंख्या शिक्षा का , राष्ट्रीय एकता की शिक्षा का और पर्यावरणीय शिक्षा का । इन सबको जीवन के अभिन्न रूप में लेना चाहिए और उन्हें जीवन से जोड़कर विकसित करना चाहिए ।

निष्कर्ष - इसमें दो मत नहीं कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और प्रकृति प्रदूषण को रोकने में पर्यावरणीय या कारगर साबित हो सकती हैं परन्तु तभी जब तत्सम्बन्धी ज्ञान का जीवन में प्रयोग किया जाए । अत : आवश्यक । पर्यावरणीय शिक्षा के साथ - साथ पर्यावरण सम्बन्धी कानूनों का कठोरता से पालन किया जाए । अभी हाल में । ली में सप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार पर पुराने वाहनों को सड़कों पर चलाने का निषेध कर दिआय गया था , सामने हैं , वाहनों से होने वाला प्रदूषण कम हुआ है । अत : सरकार को चाहिए कि वह अपने बने हुए नियमों कटोरता से पालन कराए , ज्ञान आर कारया दाना एक साथ चलने चाहिए ।

पर्यावरण शिक्षा की विधियाँ

शिक्षा वास्तव में सामान्य शिक्षा का एक अंग मात्र है जो छात्रों में पर्यावरण के प्रति सजगता उत्पन्न | का प्रदूषित न होने देने की अभिवत्ति उत्पन्न करता है कि तथा पर्यावरण में सुधार करने की विधियों का ज्ञान कराता है । कराता है । दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि पर्यावरण शिक्षा के अंतर्गत पयावरण स सम्बान्धत पाठ्यवस्तु की शिक्षा क्षिा प्रदान की जाती है । क्योंकि पर्यावरण शिक्षा सामान्य शिक्षा की ही एक शाखा है इसलिए पर्यावरण शिक्षा । की विधि वाषया सामान्य शिक्षा प्रदान करने की विधियों से भिन्न नहीं हो सकती है । वस्तुतः पर्यावरण शिक्षा के लिए उन्हीं विधियों का प्रयोग किया जबाग किया जाता है जिन्हें सामान्य शिक्षा के लिए प्रयक्त किया जाता है परन्तु यहा इस बात पर ध्यान हा कि पयावरण शिक्षा की विषयवस्त की प्रकति अपेक्षाकत व्यापक होने के कारण पर्यावरण शिक्षा में व्याख्या मानक स्थान पर अन्य अनभवजनित विधियों पर अधिक जोर दिया जाता है । व्याख्यान विधि का उपयोग छात्रों को पयावरण , पर्यावरण प्रदूषण , पर्यावरण संरक्षण तथा पर्यावरण सम्बन्धी ज्ञान प्रदान करने के लिए किया जाता है परन्त । छात्रा म समझ उत्पन्न करने , चितंन को जागत करने . उनमें सजगता उत्पन्न करने , आदत निर्माण करने , तथा कोशल विकसित करने ऐसे उद्देश्यों के लिए वाद - विवाद , पर्यटन , प्रोजेक्ट आदि विधियों का प्रयोग अधिक उपयुक्त माना जाता है । पर्यावरण शिक्षा की प्रमुख विधियों को आगे संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है

1 . व्याख्या विधि ( Lecture Method ) - इस विधि में पर्यावरण से सम्बन्धित किसी प्रकरण अथवा समस्या पर अध्यापक अथवा वक्ता व्याख्यान के रूप में विषयवस्तु प्रस्तुत करात है । छात्र अथवा श्रोतागण उस व्याख्यान को सुनकर सम्बन्धित प्रकरण , समस्या के विभिन्न पक्षों के बारे में ज्ञान प्राप्त करते हैं । उच्चस्तरीय छात्रों तथा प्रौढ़ व्यक्तियों को पर्यावरण शिक्षा प्रदान करने के लिए यह एक उपयोगी , प्रभावी तथा मितव्ययी विधि है ।

2 . वाद - विवाद विधि ( Discussion Method ) - वाद - विवाद विधि में किसी प्रकरण अथवा समस्या पर विचार विमर्श करके उसके विभिन्न पक्षों को स्पष्ट किया जाता है । वाद - विवाद में व्यक्तियों के कम से कम दो पक्ष होते हैं जो किसी प्रकरण अथवा समस्या पर अपने - अपने विचार प्रस्तुत करते हैं तथा प्रमाणों , तर्कों को प्रस्तुत करके अपनी बात की स्वीकृति कराने का प्रयास करते हैं । प्रदूषण समस्या , पर्यावरण एवं विकास प्रक्रिया , जनसंख्या समस्या , आधुनिकीकरण की प्रक्रिया जैसे प्रकरणों पर वाद - विवाद का आयोजन किया जा सकता है । जटिल बातों को स्पष्ट रूप से समझाने व उनका अवबोध कराने में यह विधि अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती है । वाद - विवाद से अस्पष्टता समाप्त हो जाती है तथा प्रकरण के विभिन्न अंक स्पष्ट रूप से समझ में आ जाते हैं ।

3 . प्रोजेक्ट विधि ( Project Method ) - प्रोजेक्ट विधि करके सीखने के सिद्धान्त पर आधारित एक विधि है । जब छात्रों को किसी प्रकरण का विस्तार से अध्ययन कराना होता है तब प्रोजेक्ट विधि का प्रयोग किया जा सकता है । इस विधि में व्यक्तियों / छात्रों को कुछ छोटे - छोटे समूहों में बाँट दिया जाता है तथा प्रत्येक समूह को एक प्रोजेक्ट पूरा करने का उत्तरदायित्व सौंप दिया जाता है । जैसे किसी समूह को पास में निर्माणाधीन कारखानेका प्रोजेक्ट देकर कहा जा सकता है कि वह कारखाने के फलस्वरूप होने वाले प्रभावों का अध्ययन करे । अध्ययन में वायु प्रदूषण , जल प्रदूषण , मृदा प्रदूषण , ध्वनि प्रदूषण तथा सामाजिक प्रदूषण व इन्हें रोकने के उपायों पर विशेष ध्यान दिया जा सकता है ।

4 . पर्यटन विधि ( Excursion Method ) - पर्यावरण शिक्षा जैसे विषय को पढ़ाने के लिए पर्यटन विधि एक प्रभावशाली शिक्षण विधि है । किसी स्थान विशेष के पर्यावरण तथा उसके प्रदूषण का अध्ययन करने के लिए शैक्षिक पर्यटन का आयोजन किया जा सकता है । पर्यटन के द्वारा स्वयं अपने अनभव के द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं । कल कारखानों , नगरीकरण , बाँध निर्माण , सड़क निर्माण आदि के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को प्रत्यक्ष रूप से जानने के लिए पर्यटन का आयोजन किया जा सकता है । प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न संस्थाओं अथवा कारखानों द्वारा किये जा रहे उपायों के अध्ययन के लिए भी पर्यटन का आयोजन किया जा सकता है ।

5. वाह्य अध्ययन विधि ( Out - door Study Method ) - वाह्य अध्ययन स तात्पर्य छात्रों को विद्यालयों की पारस्थातया स निकाल कर प्रकृति की गोद में ले जाकर अध्ययन कराना है । जैसे नदी , गुफा , पहाड़ , जंगल . रागस्तान , गाव आदि पर्यावरण के अध्ययन के लिए ले जाया जा सकता है । वाह्य अध्ययन के निर्धारण के साथ साथ वाह्य अध्ययन के पूर्ण कार्यक्रमों को सावधानी पूर्वक तैयार किया जाता है जिससे छात्र वाह्य अध्ययन की अवधि में वांछित अवलोकन कर सकें ।

6 . प्रदर्शनी विधि ( Exhibition Method ) - जनसाधारण को पर्यावरण शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रदर्शनियों का प्रयोग किया जा सकता है । जैसे - वन्य जीवन से सम्बन्धित प्रदर्शनी का आयोजन करके वन्य प्राणियों तथा वनस्पतियों के जीवन - चक्र तथा एक दूसरे पर निर्भरता को बताया जा सकता है । इसी प्रकार से नगरीकरण जनसंख्या वृद्धि आदि के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को चित्रों की सहायता से प्रदर्शित किया जा सकता है । इलाहाबाद में प्रतिवर्ष लगने वाले माघ मेले में तथा कुंभ व अर्द्धकुम्भ के अवसर पर जल प्रदूषण के बारे में जनसाधारण को अवगत कराने के लिए प्रदर्शनियाँ एक सशक्त तथा महत्वपूर्ण माध्यम हैं जिसके द्वारा विभिन्न प्रकरणों का ज्ञान रोचक व सरल ढंग से शिक्षित तथा अशिक्षित सभी को कराया जा सकता है ।

7 . खेल विधि ( Play Method ) - छोटे बच्चों की शिक्षा प्रदान करने में खेल महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते है । पर्यावरण शिक्षा हेतु भी इस विधि का उपयोग किया जा सकता है । खेलों के माध्यम से छात्रों में स्वयं निर्णय लेने की योग्यता के साथ - साथ पर्यावरण संरक्षण के प्रति सकारात्मक अभिवृत्तियों का निर्माण किया जा सकता है ।

पर्यावरण की संस्थायें

पर्यावरण तथा उसके संरक्षण का सम्बन्ध सभी से है । यही कारण है कि पर्यावरण शिक्षा का उत्तरदायित्व किसी एक पर नहीं छोड़ा जा सकता । स्थानीय संस्थायें , राज्य संस्थायें , राष्ट्रीय संस्थायें तथा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थायें सभी को एक दिशा में मिल - जुलकर काम करना होगा । नगरपालिका में , नगरनिगम , जिलापरिषद , कल - कारखाने , उद्योग विभाग , स्कूल कॉलेजों व विश्वविद्यालयों , जनसंचार साधनों , समाचार पत्र , पत्रिकायें , रेडियो , दूरदर्शन , फिल्म आदि सभी के योगदान से पर्यावरण शिक्षा का प्रचार व प्रसार सम्भव है ।

जनसंख्या विस्फोट तथा औद्योगीकर के कारण मानव ने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अंधाधुंध किया है । परिणामत : जल प्रदूषण , वायु प्रदूषण , मृदा प्रदूषण , ध्वनि प्रदूषण आदि समस्यायें उत्पन्न हो गई हैं । प्राकृतिक संतुलन में व्यवधान आने लगा है । अगर प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया तब मानव जाति जीवित नहीं रह सकती । प्राकृतिक संतलन में हो रहे व्यवधान के फलस्वरूप मानव जीवन एक दोराहे पर आकर खड़ा हो गया है । वस्तुतः प्रकृति का संरक्षण करना हम सभी का न केवल एक पुनीत कर्तव्य है वरन् अस्तित्व हेतु एक आवश्यकता है । आज पर्यावरण की समस्या एक ज्वलंत समस्या बन गई है । इस समस्या का निराकरण करने के लिए गम्भीर प्रयास की आवश्यकता है । पर्यावरण की रक्षा तथा उसमें सधार के लिए आवश्यक माहौल तैयार करने के लिए पर्यावरण शिक्षा पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक । है । जन समदाय की पर्यावरण के प्रति सजगता को बढ़ाने के लिए प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस Environment Day ) मनाया जाता है । इस दिन गोष्ठियों का आयोजन करके , रैलियों को निकालकर तथा  पर्यावरण को बचाने के प्रयासों की आवश्यकता की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया जाता है एवं इस दिशा में प्रयास करने के संकल्प किये जाते हैं । वस्तुतः पर्यावरण की रक्षा करना सबका एक पुनीत कर्तव्य है । ।

By Alok Verma