इकाई - 4 उर्वरकों के प्रकार एवं मृदा - परीक्षण , कृषि विज्ञान कक्षा 7

इकाई - 4 उर्वरकों के प्रकार एवं मृदा - परीक्षण 

नत्रजनीय उर्वरक 
फॉस्फेटिक उर्वरक 
पोटैशिक उर्वरक 
यौगिक एवं मिश्रित उर्वरक 
जैव उर्वरक , इसके प्रकार , प्रयोग विधि एवं लाभ 
मृदा परीक्षण की आवश्यकता 
मृदा परीक्षण हेतु मिट्टी एकत्र करना 
मृदा परीक्षण कराएँ । 

कार्बनिक या अकार्बनिक पदार्थ जिससे पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्वों की पूर्ति की जाती है खाद या उर्वरक कहलाते हैं । खाद कार्बनिक पदार्थ होते हैं जबकि उर्वरक प्राय : अकार्बनिक पदार्थ होते हैं । खाद में पौधों के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्त्व पाये जाते हैं जबकि उर्वरकों में एक - दो या कभी - कभी तीन तत्त्व पाये जाते हैं । उर्वरक कृत्रिम ढंग से फैक्टरी में बनाये जाते हैं जिनमें पोषक तत्त्वों की प्रतिशत मात्रा अधिक होती है तथा कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बहुत कम या नहीं होती हैं । इसमें मुख्य तत्त्व हैं - नाइट्रोजन , फॉस्फोरस तथा पोटैशियम । 

नत्रजनीय उर्वरक
 वजन के आधार पर नाइट्रोजन 78 % वायुमण्डल में और 79 % मृदा वायु में पाया जाता है लेकिन उपर्युक्त नाइट्रोजन को पौधे सीधे नहीं ले पाते हैं । केवल दलहनी फसलें उपर्युक्त नाइट्रोजन को स्थिरीकरण द्वारा लेती हैं । वर्गीकरण - नाइट्रोजन के रासायनिक रूप के आधार पर नत्रजन उर्वरकों को निम्नलिखित वर्गों में बाँटते है -

1 . नाइट्रेट उर्वरक ( क ) सोडियम नाइट्रेट - 16 % नाइट्रोजन ( ख ) कैल्सियम नाइट्रेट - 15 % नाइट्रोजन । इन उर्वरकों में उपलब्ध नाइट्रोजन नाइट्रेट रूप में होती है । जिसे पौधे उसी रूप में ग्रहण करते हैं इन उर्वरकों का प्रयोग खड़ी फसल में छिड़काव के रूप में करने से अधिक लाभ होता है । 

2 . अमोनियम उर्वरक - ( क ) अमोनियम सल्फेट - 20 % नाइट्रोजन ( ख ) डाई अमोनियम फॉस्फेट - 18 % नाइट्रोजन । इस वर्ग के उर्वरकों में नाइट्रोजन अमोनियम रूप में मिलता है जो मृदा में नाइट्रीकरण द्वारा नाइट्रेट में परिवर्तित हो जाता है फिर पौधों को प्राप्त होता है । अत : इस वर्ग के उर्वरकों को मिट्टी में मिलाना चाहिए ।

3 . अमोनियम और नाइट्रेट उर्वरक - ( क ) अमोनियम नाइट्रेट - 33 . 5 % माइट्रोजन , ( ख ) अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट - 26 % नाइट्रोजन । इस वर्ग के उर्वरकों में नाइट्रोजन , अमोनिया एवं नाइट्रेट दोनों रूपों में पायी जाती है । नाइट्रेट से नाइट्रोजन पौधों को तुरन्त प्राप्त हो जाती है लेकिन अमोनियम से नाइट्रोजन धीरे - धीरे प्राप्त होती है । इन्हें भी बुवाई के समय खेत में मिलाना चाहिए । 

4 . नाइट्रोजन घोल - ( क ) अमोनिया - यूरिया घोल - 35 % नाइट्रोजन 

5 . एमाइड उर्वरक - ( क ) यूरिया - 46 % नाइट्रोजन 

विशेष - इस वर्ग का सबसे महत्त्वपूर्ण उर्वरक यूरिया है जिसमें कार्बन पाया जाता है इसलिए इसे कार्बनिक उर्वरक कहते हैं । यूरिया जल में बहुत अधिक घुलनशील है । अत : इसको ( 2 % ) घोल के रूप में भी खड़ी फसल में छिड़काव करते हैं ।

 नाइट्रोजन का मृदा एवं पौधों में महत्व 
यह पौधों की वृद्धि में सहायता करता है । पौधों में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ाता है । अनाजों के उत्पादन एवं प्रोटीन की मात्रा में वृद्धि करता है । मृदा में नाइट्रोजन की कमी से पौधों की बढ़वार रुक जाती है । मृदा में अत्यधिक नाइट्रोजन होने पर पौधों की बढ़वार बहुत अधिक हो जाती है जिससे पौधे गिर जाते हैं , फलियों या बालियों में दाने कम बनते है और उत्पादन बहुत कम हो जाता है । नाइट्रोजन की कमी से पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाती हैं । आलू छोटे एवं कम बनते हैं । फल छोटे - छोटे हो जाते हैं और पकने से पहले ही गिर जाते हैं । 

फॉस्फेटिक उर्वरक 
फॉस्फोरस प्रत्येक पेड़ पौधों एवं वनस्पतियों का अति आवश्यक तत्त्व या भाग है । नाइट्रोजन के बाद पौधों के जीवन में फॉस्फोरस का दूसरा स्थान है । वे सभी अकार्बनिक पदार्थ , जो पौधों को फॉस्फोरस देने के लिए प्रयोग किये जाते हैं , फॉस्फेटिक उर्वरक कहलाते हैं । 

वर्गीकरण
घुलनशीलता के आधार पर फॉस्फेटिक उर्वरकों को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है । 

1 . जल में घुलनशील - जो उर्वरक जल में घुल जाते हैं उन्हें घुलनशील फॉस्फेटिक उर्वरक कहते हैं । इस वर्ग के उर्वरक में उपस्थित फॉस्फोरस को पौधे शीघ्रता से ले लेते हैं । इन्हें अम्लीय एवं उदासीन मृदाओं में प्रयोग किया जाता है । क ) सिंगल सुपर फॉस्फेट - 16 % फॉस्फोरस ख ) मोनो अमोनियम फॉस्फेट - 48 % फॉस्फोरस 

2 . साइट्रेट घुलनशील - जो उर्वरक साइट्रिक अम्ल ( नींबू में पाया जाने वाला अम्ल ) में घुलनशील एवं पानी में अघुलनशील होते हैं उन्हें साइट्रेट घुलनशील फॉस्फेटिक उर्वरक कहते हैं । इस वर्ग के उर्वरकों का प्रयोग अम्लीय मृदाओं में लाभकारी होता है । क ) डाई कैल्सियम फास्फेट - 32 % फॉस्फोरस । ख ) बेसिक स्लैग - 15 - 25 % फॉस्फोरस

3 . अघुलनशील - जो उर्वरक पानी और साइटिक अम्ल दोनों में नहीं घलते हैं उन्हें अघुलनशील फॉस्फेटिक उर्वरक कहा जाता है । इस वर्ग के उर्वरकों का उपयोग अधिक अम्लीय मृदाओं में ही किया जाता ह ।

 क ) राक फॉस्फेट - 20 - 40 % फॉस्फोरस
 ख ) हड्डी का चूरा - 20 - 25 % फॉस्फोरस 

फॉस्फोरस का मृदा एवं पौधों में महत्त्व 
फॉस्फोरस के कारण पौधों की वृद्वि अच्छी एवं शीघ्रता से होती है । फॉस्फोरस राइजोबियम बैक्टीरिया की वृद्वि करके फलीदार फसलों द्वारा वायुमण्डल से नाइट्रोजन को मृदा में स्थिर करने में सहायता करता है । दाने की गुणवत्ता को बढ़ाता है । नाइट्रोजन की विषाक्तता ( Toxicity ) को कम करता है । पौधों में वसा की मात्रा को बढ़ाता है । पौधों में फूल लगने एवं दाने बनने में सहायक होता है । फसलों में बीमारियाँ कम लगती हैं और वे जल्दी पक जाती हैं । फसलों को गिरने से बचाता है । पौधों में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाता है । । फॉस्फोरस की कमी से पौधों की पत्तियाँ गहरी हरी या नीलापन लिए हो जाती हैं और उनकी बढ़वार रुक जाती है । । 

पोटेशिक उर्वरक 
वे उर्वरक जो पौधों को पोटाश देते हैं , पोटैशिक उर्वरक कहलाते हैं । पौधों के जीवन में पोटाश का तीसरा स्थान है । पोटाश के महत्त्व को मनुष्य सदियों से जानता है । भारत की मृदाओं में पोटाश की कमी नहीं के बराबर है । 

पोटैशिक उर्वरकों का वर्गीकरण
पोटैशिक उर्वरकों को दो समूहों में रखा गया है । 

1 . पोटैशिक उर्वरक जिनमें क्लोराइड लवण उपस्थित होते हैं - इस समूह का मुख्य उर्वरक म्यूरेट ऑफ पोटाश या पोटैशियम क्लोराइड है जिसमें 60 % पोटाश पाया जाता है । सभी उर्वरकों से सस्ता होने के कारण किसानों द्वारा इसका सबसे अधिक उपयोग होता है । इस उर्वरक का प्रयोग आलू , टमाटर , तम्बाकू एंव चुकन्दर में नहीं करना चाहिए क्योंकि क्लोरीन की अधिकता के कारण इन फसलों की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । 

2 . पोटशिक उर्वरक जिनमें क्लोराइड लवण उपस्थित नहीं होते हैं - इस समूह का मुख्य उर्वरक पोटैशियम सल्फेट है जिसमें 48 - 52 % पोटाश पाया जाता है । इसे सल्फेट आफ पोटाश भी कहते हैं । पोटैशियम क्लोराइड की तुलना में यह महंगा उर्वरक है । आलू , टमाटर , तम्बाकू और चुकन्दर की फसलों में इसका उपयोग लाभकारी होता है । 

पोटाश का मृदा एवं पौधों में महत्त्व -
 यह पौधों की वृद्वि एवं फलों की चमक को बढ़ाता है । फलों का स्वाद बढ़ जाता है । पौधों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है । प्रोटीन निर्माण में सहायता करता है । यह तना एवं जड़ों को मजबूत बनाता है जिससे हवा या पानी के । कप्रभाव से फसलें गिरती नहीं हैं । नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की अधिकता को संतुलित रखता है । पोटाश की कमी से फसलें देर से पकती हैं और दानों , फलों एवं बीजों का उत्पादन घट जाता है । 

यौगिक एवं मिश्रित उर्वरक
 दो या दो से अधिक उर्वरकों के मिश्रण को जिसमें दो या दो से अधिक पोषक तत्त्व उपस्थित हों मिश्रित उर्वरक या उर्वरक मिश्रण कहते हैं । मिश्रित उर्वरक जिसमें केवल दो मुख्य पोषक तत्व उपस्थित हो अपूर्ण मिश्रित उर्वरक कहलाते हैं और जिसमें तीन मुख्य पोषक तत्त्व ( नाइट्रोजन , फॉस्फोरस एवं पोटाश ) उपस्थित हो , उसे पूर्ण मिश्रित उर्वरक कहते हैं ।

 आज कल विभिन्न फसलों के लिए विशेष उर्वरक मिश्रण बनाये जाते हैं । उर्वरक मिश्रण में नाइट्रोजन , फॉसमोर और पोटैशियम के अतिरिक्त अन्य पोषक तत्त्व भी मिलाये जाते हैं । मिश्रित उर्वरक तीन मानक ( ग्रेड ) के होते हैं

 1 . कम मानक - इनमें नाइट्रोजन , फॉस्फोरस एवं पोटैशियम की कम प्रतिशत मात्रा पाई जाती है । जब नाइटोजन फॉर आर पाटाश के प्रतिशत मात्रा का योग 14 से कम होता है तब उसे कम मानक मिश्रित उर्वरक 2 , 2 - 4 - 6 ग्रेड ।

 2 . मध्यम मानक - इनमें नाइट्रोजन , फॉस्फोरस एवं पोटैशियम की मध्यम प्रतिशत मात्रा पायी जाती है . . तत्त्वों की प्रतिशत मात्राओं का योग 15 - 25 तक होता है तब उसे मध्यम मानक मिश्रित उर्वरक को 5 - 8 - 7 , 6 - 4 - 8 ग्रेड ।

 3 . उच्च मानकइनमें नाइट्रोजन , फॉस्फोरस एवं पोटैशियम की अधिक प्रतिशत मात्रा पायी जाती है । जब की प्रतिशत मात्रा का योग 25 से अधिक होता है तब उसे उच्च मानक मिश्रित उर्वरक कहते हैं । जैसे - 19 19 - 19 , 22 - 22 - 11 ग्रेड । 

मिश्रित उर्वरक के लाभ 
1 . मिश्रित उर्वरक सस्ता होता है । 2 . मिश्रित उर्वरक मिट्टी और फसल की आवश्यकता के अनुसार बनाये जाते हैं जिससे पैदावार बढ़ जाती है । 3 . किसान बिना किसी परेशानी के मिश्रित उर्वरक प्रयोग कर सकता है । 4 . इसको सुगमता पूर्वक रखा जा सकता है । 

मिश्रित उर्वरकों से हानियाँ 
1 . जब मृदा में केवल एक या दो तत्त्वों की कमी हो . तब मिश्रित उर्वरक का प्रयोग लाभकारी नहीं होता है । 2 . मिश्रित उर्वरक में एक तत्त्व की अधिकता होती है जबकि दूसरे तत्त्व की कमी होती है ।

जटिल उर्वरक
आज कल ऐसे उर्वरको का उत्पादन अधिक हो रहा है जिसमें पौधों के लिए आवश्यक दो या सभी मुख्य पोषक तत्त्व उपस्थित होते हैं । इस प्रकार के उर्वरकों को जटिल उर्वरक कहते हैं । जब इन उर्वरकों में केवल दा पा होते हैं तब उन्हें अपूर्ण जटिल उर्वरक और जब तीनों मुख्य पोषक तत्त्व उपस्थित होते हैं , तब उन्हें पूर्ण कहते हैं । ये उर्वरक उन उर्वरकों से बहुत अच्छे होते हैं जिनमें केवल एक पोषक तत्त्व उपस्थित होता है , ज सल्फेट या सुपर फॉस्फेट या म्यूरट आफ पाटाश , क्योंकि इनमें नपे - तले पोषक तत्त्व उपस्थित होते है । । 

जटिल उर्वरकों के गुण 
1 . इनमें पोषक तत्त्वों की अधिक मात्रा पायी जाती है । 
2 . जटिल उर्वरकों के रखने एवं ढोने की लागत कम होती है जिससे ये सस्ते होते हैं । केवल एक पोषक तत्त्व उपस्थित होता है , 
3 . लगभग 50 - 90 % नाइट्रोजन और फॉस्फोरस पौधों को प्राप्त हो जाते हैं क्योंकि ये पानी में घुलनशील होते ।

जटिल उर्वरक के प्रकार -
 जटिल उर्वरक तीन प्रकार के होते हैं 
1 . अमोनियम फॉस्फेट - 
क ) मोनो अमोनियम फॉस्फेट 
ख ) डाई अमोनियम फॉस्फेट 
ग ) अमोनियम फॉस्फेट सल्फेट 

2 . नाइट्रो फॉस्फेट राक फॉस्फेट पर नाइट्रिक अम्ल की क्रिया से नाइट्रो - फास्फेट बनता है । 

3 . एन . पी . के . जटिल उर्वरक - आजकल विभिन्न मानक के एन . पी . के . जटिल उर्वरक बनाये जाते हैं । ये दानेदार होते हैं और इनकी दशा अच्छी होती है । इनमें तीनों प्रमुख तत्त्व ( नाइट्रोजन , फॉस्फोरस एंव पोटाश ) विभिन्न मात्रा में पाये जाते हैं जिसे ग्रेड कहते हैं । 

जैसे - 12 : 32 : 16 इसका अर्थ यह है कि इस ग्रेड के उर्वरक में 12 प्रतिशत नाइट्रोजन , 32 प्रतिशत फॉस्फोरस एवं 16 प्रतिशत पोटाश उपलब्ध है । 

जैव उर्वरक ( Bio Fertilizer ) 
जैव उर्वरक सूक्ष्म जीव कल्चर होते हैं जो प्रायः मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाने के लिये प्रयोग किये जाते हैं । कुछ सूक्ष्म जीव कल्चर पौधों के लिये फॉस्फोरस की प्राप्यता को बढ़ाने के लिये प्रयोग किये जाते हैं और कुछ कार्बनिक पदार्थ को शीघ्रता से सड़ाने के लिये प्रयोग किये जाते हैं । जैव उर्वरक बहुत सस्ते होते हैं । इनका प्रयोग बहुत आसान होता है । एक सामान्य किसान इसे आसानी से प्रयोग कर सकता है । जैव उर्वरक का प्रयोग करके फसलों के लिए आवश्यक नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा को बहुत कम किया जा सकता है । 

जैव उर्वरक का वर्गीकरण - 
जैव उर्वरकों को मुख्य रूप से 3 वर्गों में विभाजित किया जाता है - 
1 . नाइट्रोजन स्थिर करने वाले जैव उर्वरक 
2 . फॉस्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जैव उर्वरक 
3 . कार्बनिक पदार्थ को सड़ाने वाले जैव उर्वरक 

नाइट्रोजन स्थिर करने वाले जैव उर्वरक - 
दलहनी फसलों की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिर करने वाली गाठे पायी जाती हैं जिसमें सूक्ष्म जीव एवं वैक्टीरिया ( जीवाणु ) उपस्थित होते हैं जो वायुमण्डल की नाइट्रोजन को मृदा में स्थिर करते हैं । जब सूक्ष्म जीवों का कल्चर ( जैव उर्वरक ) मृदा में मिला दिया जाता है तो सूक्ष्म जीवों द्वारा मृदा में स्थिर किये गये नाइट्रोजन में बहुत अधिक वृद्धि हो जाती है । प्रयोग किए जाने वाले कुछ जैव उर्वरक निम्नलिखित है 
1 . राइजोबियम कल्चर 
2 . ऐजोटोवैक्टर कल्चर 
3 . नीली - हरी शैवाल कल्चर 
4 . फॉस्फोबैक्टिरीन कल्चर 

राइजोबियम कल्चर का उपयोग दलहनी फसलों में किया जाता है तथा ऐजोटोबैक्टर कल्चर धान , कपास , ज्वार , सरसों , सब्जी , गेहूँ , जौ आदि फसलों में प्रयोग किया जाता है । नीली हरी शैवाल कल्चर का उपयोग धान की फसल में किया जाता है । 

जैव उर्वरक प्रयोग करने की विधि -
हमारे प्रदेश में मृदा उर्वरता बढ़ाने के लिये मुख्य रूप से राइजोबियम कल्चर का प्रयोग किया जाता है । 100 - 200 ग्राम गुड़ को एक लीटर पानी में गर्म करके घोल बना लेते है । 200 ग्राम कल्चर गुड़ के घोल में अच्छी प्रकार मिलाते हैं । गुड़ और कल्चर के मिश्रण को एक हेक्टेयर में प्रयोग किये जाने वाले बीज के साथ अच्छी प्रकार मिलाते हैं और 30 मिनट के लिए छोड़ देते हैं । इस प्रकार शोधित बीज को छाये में सुखाकर खेत में बो देते हैं । 

जैव उर्वरक प्रयोग करने के लाभ 
1 . जैव उर्वरक से भूमि की उर्वरता बढ़ती है । 
2 . वायुमण्डल नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में सहायक होता है । 
3 . भमि में स्थिर एवं अविलेय , फास्फोरस को घुलनशील बनाकर पौधों को उपलब्ध कराता है । 
4 . जैव पदार्थों को तीव्रता से सड़ाने में सहायक होता है । 
5 . भूमि की जल धारण क्षमता को बढ़ाता है । 
6 . फसलों की उपज बढ़ाने में सहायक होता है । 
7 . पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में सहायक होता है । 

मृदा परीक्षण की आवश्यकता -
मृदा का परीक्षण किया जाता है जिससे पता चलता है कि मृदा फसल उगाने के योग्य है या नहीं ; मृदा से अच्छी पैदावार मिल सकती है या नहीं । 
मृदा परीक्षण उर्वरता निर्धारण के लिए एक अति महत्त्वपूर्ण रासायनिक विधि है । यह विधि इस दृष्टि से अधिक उपयोगी है कि फसल बोने के पूर्व ही मृदा में पोषक तत्त्वों के स्तर का ज्ञान हो जाता है जिससे फसलों में संतुलित उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है । 

मृदा परीक्षण के उद्देश्य - 
1 . मृदा में सुलभ पोषक तत्वों का सही - सही निर्धारण । 
2 . विभिन्न फसलों की दृष्टि से तत्त्वों की कमी का आकलन । 
3 . खराब मृदाओं जैसे ऊसर एवं अम्लीय मृदाओं में सुधारकों की मात्रा का निर्धारण । 

मृदा परीक्षण हेतु मिट्टी एकत्रित करना 
एक खेत के बराबर हिस्से के 10 - 20 स्थानों से जुती हुई संस्तर ( 9 - 20 सेमी ) गहराई से मिट्टी एकत्रित करते हैं । मिट्टी एकत्रित करने से पहले मृदा के ऊपर जमी घास - फस को खपी या फावड़े की सहायता से हटा दतह तत्पश्चात प्रत्येक स्थान से 1 - 2 किग्रा मिट्टी एकत्रित करते हैं । इस प्रकार का एक संयुक्त नमूना 2 - 4 हेक्टयर खत का लिए एकत्रित किया जाता है । ढालदार स्थानों से मृदा नमूना निचले , मध्य एवं ऊपरी भागों के लिए अलग - अलग एकत्रित करते हैं । संयुक्त मृदा नमूने को अच्छी प्रकार एक में मिलाकर उसके चार भाग कर लेते हैं जिसके तीन भाग को हटा देते । हैं । इस क्रिया को लगभग आधा किग्रा मृदा रहने तक दोहराते हैं । इस मृदा नमूने को कपड़े के एक थैले में रख लेते हैं । 

सावधानियां -
1 . निचली या ऊंची जगह , खाद के ढेर , फाटक के पास जहाँ जानवर ( मरे हुए ) गड़े हों , छायादार स्थान , कुओं एवं नहर के समीप , खेत के किनारे या मकानों के निकटवर्ती स्थानों से नमूना एकत्रित नहीं करना चाहिए । 
2 . नमूना एकत्रित करने के लिए साफ थैली का प्रयोग करना चाहिए । 
3 . खड़ी फसल वाले खेत में मृदा नमूना दो लाइनों के बीच से एकत्रित करते हैं । 

मृदा परीक्षण करायें 
हमलोग भली - भाँति जानते है कि जब कोई बीमारी होती है तो डॉक्टर के पास जाते हैं । डॉक्टर हमलोगों की जाँच पड़ताल नाड़ी देखकर , आँख देखकर , आला लगाकर आदि करके पत्ता लगाता है कि हमें कौन सा रोग हैं । यदि डॉक्टर के समझ में रोग नहीं आता है तो खून मल - मूत्र के परीक्षण के लिये रोग विज्ञान प्रयोगशाला के पास भेजता है जिससे सही रोग के कारण का सही पता चल सके । पुन : डॉक्टर रोगी का इलाज करता है और रोगी ठीक हो जाता है ।

फसलों को बोने से पहले मिट्टी का परीक्षण करवाना अति आवश्यक होता है । कौन सी फसल बोना है ? उसके लिए कितने पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होगी ? पोषक तत्वों को किन - किन साधनों से देना है ? आदि को ध्यान रखकर मृदा का परीक्षण करवाना चाहिए और उसके बाद मृदा परीक्षण सूचना के अनुसार खेत में खाद , उर्वरक एवं कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करने के बाद ही बीज बोना चाहिए ।