भू - परिष्करण, इकाई 3, कृषि विज्ञान 7

इकाई - 3     भू - परिष्करण

शून्य भू - परिष्करण - लाभ एवं हानि 
भू - परिष्करण का 
मिट्टी पर प्रभाव 
पाटा लगाने से लाभ 
मिट्टी चढ़ाने से लाभ 
जुताई के प्रकार 
भू - परिष्करण के यंत्र  


शून्य भू परिष्करण 

किसी फसल की बुआई , पूर्व फसल के अवशेषो में ही बिना जुताई किये , सीधे रूप से करना शून्य भू - परिष्करण कहलाता है । जहाँ पर खरपतवार नियन्त्रण रासायनिक विधि से करते है , वहाँ पर यह विधि उपयुक्त है । 

लाभ
1 . खेती की लागत मे कमी 
2 . मृदा क्षरण का कम होना 
3 . मृदा संरचना को यथावत बनाये रखना । 
4 . श्रम एवं धन की बचत 

हानि
1 . मृदा में सख्त सतह का बनना । 
2 . पूर्व फसल के अवशेषों पर लगे हुए कीट एवं रोग का प्रभाव अगली फसल पर होना । 
3 . शाकनाशी रसायन का अधिक प्रयोग होना ।

भू - परिष्करण का मिट्टी पर प्रभाव 
हम जान चुके हैं कि खेतों में कृषि यंत्रों द्वारा जुताई , गुड़ाई - निराई आदि क्रियायें करना भूपरिष्करण कहलाती । भू - परिष्करण मृदा पर अनेक प्रकार से प्रभाव डालती है जो निम्नलिखित हैं
 ★ मिट्टी भुरभुरी , मुलायम एवं पोली हो जाती है । 
★ भूमि में पाये जाने वाले हानिकारक कीड़े मकोड़े एवं उनके अण्डे , बच्चे नष्ट हो जाते हैं ।
★ भूमि की भौतिक एवं रासायनिक दशाओं में सुधार हो जाता है । 
★ जल द्वारा भूमि का कटाव कम होता है या रुक जाता है । 
★ भूमि में जल धारण क्षमता बढ़ जाती है । 
★ भूमि में जल एवं वायु संचार अच्छा होता है । 
★ भूमि में कार्बनिक पदार्थ मिल जाते हैं तथा उसकी मात्रा में वृद्धि होती है । 
★ भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है । 
★ भूमि में उपस्थित लाभदायक जीवों एवं जीवाणुओं की वृद्धि हो जाती है एवं उनकी क्रियाशीलता बढ़ जाती है । 

पाटा लगाने से लाभ

 पाटा पटरी की तरह होता है । सामान्यत : यह लगभग 2 मीटर लम्बा , 30 - 50 सेमी चौड़ा एवं 3 - 6 सेमी मोटा होता है । यह लोहे का लम्बा बेलनाकार भी होता है । इसका उपयोग जुताई के बाद किया जाता है । पाटा लगाने से अनेक लाभ होते हैं 
★ बड़े - बड़े ढेले टूट - फूट कर महीन कण बन जाते हैं । 
★ खेत समतल हो जाता है जिससे बुवाई करने में आसानी होती है । 
★ मृदा की ऊपरी सतह पर एक पतली पपड़ी या पर्त बन जाती है जिससे मृदा की नमी सुरक्षित रहती है । 
★ कृषि कार्यों जैसे मेंड़ बनाना , सिंचाई आदि में सुविधा होती है । 
★ पाटा लगाने से खरपतवार एक जगह एकत्रित हो जाते है जिन्हें खेत से बाहर करके नष्ट कर दिया जाता है । 
★ बीजों का अंकुरण अच्छा होता है । 
★ अधिक वर्षा होने पर खेत में सभी जगह बराबर मात्रा में पानी अवशोषित होता है या आसानी से बाहर निकल जाता है । 

मिट्टी चढ़ाने से लाभ
आलू , शकरकन्द , अरवी , बण्डा आदि फसलों में जड़ के ऊपर मिट्टी चढ़ाये जाने का अवलोकन कीजिए । आखिर किसान कुछ ही फसलों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाता है , क्यों ? यहाँ हमलोग मिट्टी चढ़ाने से होने वाले लाभ के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे जिससे स्पष्ट हो जायेगा कि फसलों पर मिट्टी क्यों चढ़ाई जाती है ? 

1 . कन्द वाली फसलों जैसे आलू , बण्डा , शकरकंद आदि की जड़ों के चारों ओर मिट्टी चढ़ाने से उनकी जड़ों का विकास अच्छा होता है । 
2. कन्द बड़े एवं अधिक संख्या में बनते हैं जिससे पैदावार अधिक होती है । 
3. यदि कन्द वाली फसलों पर मिट्टी न चढ़ाई जाय तो कंद हरे होते हैं जो खाये नहीं जाते हैं । 
4 . सिंचाई करने में सुविधा होती है । जल सीधे पौधों की जड़ों के पास पहुंच जाता है । मिटी बैठती नहीं है । जिससे पौधों एवं जड़ों का विकास अच्छा होता है । 
5 . सिंचाई में जल कम मात्रा में लगता है जिससे आर्थिक नुकसान नहीं होता है । 
6 . गन्ना एवं इस प्रकार की अन्य फसलों में मिट्टी चढ़ाने से वे अधिक वर्षा एवं तेज हवा के प्रभाव से गिरने से बच जाती है । जिससे उत्पादन अच्छा होता है एवं उनके गुणों में गिरावट नहीं आती है । 

जुताई ( Ploughing ) के प्रकार
परिस्थितियों के अनुसार जुताई का वर्गीकरण - 

1 . बाहर से अंदर की ओर जुताई - इस प्रकार की जुताई भारत में प्राचीन काल से प्रचलित है । इसमें जुताई खेत के एक कोने से प्रारम्भ करके धीरे धीरे अंदर की ओर ले जाते हैं और अन्त में खेत के मध्य ( बीचो - बीच ) समाप्त करते हैं । 
2 . अंदर से बाहर की ओर जुताई - लगातार बाहर से अंदर की ओर जुताई करने से खेत बीच में नीचा हो जाता है अत : कभी कभी खेत की जुताई अन्दर से बाहर की ओर करनी चाहिए । इसमें जुताई खेत के बीचो - बीच से प्रारम्भ करके धीरे धीरे बाहर की ओर लाकर समाप्त करते हैं । 
3 . पट्टियों में जुताई - जुताई की इस विधि में भूमि को अलग - अलग पट्टियों या आइसोलेटेड बैण्ड में जोता जाता है । इस प्रकार की जुताई पहाड़ों पर की जाती है । 

गहराई के अनुसार जुताई का वर्गीकरण ।
( i ) उथली जुताई ( Shallow Ploughing ) - भूमि की 10 - 20 सेमी गहराई तक जुताई करने को उथली जुताई कहते हैं । प्रायः जुताई उथली ही की जाती है । 
( ii ) गहरी जुताई ( Deep Ploughing ) - भूमि में 20 सेमी से अधिक गहराई तक जुताई करने को गहरी जुताई कहते हैं । इसका उद्देश्य नमी सुरक्षित रखना एवं भूमि की निचली सतहों से कठोर परत को तोड़ना होता है । 

भू - परिष्करण के यंत्र

 किसान जो भी कृषि कार्य या भू - परिष्करण करता है , वह किसी न किसी यंत्र की सहायता से करता है । यहाँ हमलोग भू - परिष्करण यंत्रों के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे ।

मिट्टी पलट हल ( मोल्ड बोर्ड प्लाउ )

यह एक प्रारम्भिक भू - परिष्करण यंत्र है । मिट्टी पलट हल से पहले मिट्टी कटती है फिर पलट जाती है जिससे नीचे की मिट्टी ऊपर और ऊपर की मिट्टी नीचे हो जाती है । पलटने वाले हलों में सबसे अधिक प्रचलित मेंस्टन हल है । हमारे प्रदेश में दोमट भूमि में काम करने के लिए इससे अधिक उपयोगी अन्य कोई हल नहीं है । मेंस्टन हल से बनी कुंड की चौड़ाई 15 सेमी होती है । 

मिट्टी पलट हल दो प्रकार के होते हैं - 
i . एक हत्थे वाले ii . दो हत्थे वाले 

कल्टीवेटर-
 इसका प्रयोग प्रारम्भिक एवं द्वितीयक भू - पष्किरण दोनों के लिए किया जाता है । इस यंत्र द्वारा खेती की जुताई एवं खड़ी फसल में खेत की निराई गुड़ाई की जाती है । जिससे खरपतवार नष्ट हो जाते हैं और मिट्टी भुरभुरी एवं मुलायम हो जाती है । 
कल्टीवेटर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं
 i . पशुचालित ii . ट्रैक्टर ( शक्ति ) चालित 

हमारे प्रदेश में पशुचालित कानपुर कल्टीवेटर बहुत अधिक प्रचलित है । 


हैरो ( Harrow )
 - कल्टीवेटर के समान हैरो भी द्वितीयक भू - परिष्करण के लिए उपयोगी यन्त्र है । हैरो खेत से खरपतवार निकालकर मिट्टी को भुरभुरी बनाते हैं । मिट्टी के ऊपर बनी पपड़ी को तोड़ने एवं बिखेरी गयी खाद को मिलाने के लिए यह बहुत उपयोगी यंत्र है । 

हो ( Hoe ) 
 ' हो ' का प्रयोग केवल निराई गुड़ाई के लिए किया जाता है । लेकिन किसानों के लिए ' हो ' अधिक सुविधाजनक यंत्र है इसके दो प्रमुख कारण हैं ।

1 . अकोला ' हो ' को छोड़कर जिसे बैल खीचते हैं , यह यंत्र प्राय : हाथ से चलाए जाते हैं । इसका प्रमुख उदाहरण सिंह हैण्ड हो है । 
ii. यह बहुत कम मूल्य में उपलब्ध होते हैं और इनके प्रयोग में कोई विशेष कठिनाई नहीं होती है । 

फावड़ा

गुड़ाई तथा खुदाई करने , नाली बनाने आदि के लिए यह एक मुख्य यंत्र है । इसका फलक 15 - 20सेमी तक चौड़े लोहे का होता है । इसमें लकड़ी का हत्था लगा होता है । 

खुर्ची

यह निराई - गुड़ाई करने , घास निकालने , नर्सरी से पौधों को खोदने तथा लगाने के काम में आती है । इसका फलक 5 - 10सेमी चौड़ा होता है । छोटी तथा हल्की होने के कारण इससे आसानी से कार्य किया जाता है । 

कुदाली

गुड़ाई तथा खुदाई करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है । झाड़ीदार पौधों के नीचे गुड़ाई चित्र 3 . 7 फावड़ा करने में इससे आसानी होती है । इसके फलक की लम्बाई 10 - 15 सेमी . तथा अगले हिस्से की चौड़ाई 2 - 4 सेमी . तक होती है । इसमें भी लकड़ी का हत्था लगा होता है । 

भूमि को समतल करने के यन्त्र ( Soil levelling implements ) 

भूमि को समतल करने के लिए तीन प्रकार के यन्त्र प्रयोग में लाये जाते हैं 
( i ) पटेला या पाटा या हेंगा 
( ii ) बेलन ( रोलर ) 
( iii ) क्रैपर्स 

 बीज की बुवाई ( Seed Sowing


बीज बोने की निम्नलिखित विधियाँ हैं - 
i . छिटकवाँ ( ब्रॉडकास्टिंग ) 
ii . देशी हल द्वारा कँडों में 
iii . देशी हल में नाई - चोगा बाँधकर 
iv . डिबलर द्वारा 
v . सीडड्रिल द्वारा


देशी हल

देशी हल सच्चे अर्थ में हल नहीं है क्योंकि यह मिट्टी नहीं पलटता है । लेकिन आदि काल से हम इस यन्त्र को हल के नाम से कहते आये हैं । पिछले हजारों वर्षों से देशी हल हमारे देश का प्रमुख कृषि यन्त्र रहा है और आज भी भारतीय कृषक के जीवन में इस यंत्र का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । 
देशी हल बहुउद्देशीय यंत्र है । भूमि की जुताई के अतिरिक्त इस हल को खाद मिलाने , बीज बोने , खड़ी फसल में खरपतवार नष्ट करने और फसलों की गुड़ाई करने आदि अनेक भू - परिष्करण सम्बन्धी कार्यों लिए प्रयोग किया जाता है । विभिन्न प्रकार के देशी हलों के चित्र अंकित है । 

अन्य कृषि यन्त्र


1 .स्प्रेयर ( Sprayer )-  
 फसलों को हानिकारक कीटों एवं रोगों से बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के कीटनाशी , रोगनाशी एवं खरपतवारनाशी रसायन छिड़के जाते हैं । इन रसायनों को छिड़कने के लिए कई प्रकार के यंत्र उपयोग में लाये जाते हैं जो इन रसायनों को छोटी बूंदों के रूप में छिड़कते हैं स्प्रेयर कहलाते हैं । 

2 . डस्टर ( Duster )
 - फसलों को हानिकारक कीटों एवं रोगों से बचाने के लिए जिन यंत्रों द्वारा कीटनाशी एवं रोग नाशी रसायनों का धूल के रूप में छिड़काव किया जाता है उन्हें डस्टर कहते हैं । 
डस्टर दो प्रकार के होते हैं । 
i . हस्त चालिता
Ii. शक्ति चालित 

3 . फसलों की मँडाई ( Thresing )
 - मंड़ाई करने की निम्नलिखित विधियाँ हैं - 
i . हाथ से पीटकर
ii . पशुओं की सहायता से मड़ाई करना
iii . आलपैड थ्रेसर से 
iv . धान की जापानी मँड़ाई मशीन से 
v . शक्ति चालित गहाई मशीन से 

4 . ओसाई का पंखा ( Winowing fan ) 
यह अपेक्षाकृत बड़े आकार का पंखा है और अधिक हवा देता है । 
यह दो प्रकार का होता है । 
( i ) हाथ से चलाये जाने वाला । ( ii ) पैर से चलाये जाने वाला । 

5 . सीड ड्रेसर ( Seed dresser )
 - बुवाई से पूर्व बीज को रोग रहित बनाने के लिए प्राय : उसमें कीटनाशी एवं फफूंदनाशी दवायें मिलायी जाती हैं । इसके लिये सीड ड्रेसर बहुत उपयोगी होता है । इसमें लोहे के फ्रेम पर एक ड्रम लगा होता है जिसको हैण्डिल की सहायता से घुमाया जाता है । 

6 . फसल कटाई यन्त्र -
 शक्ति प्रयोग के आधार पर फसल कटाई यन्त्र तीन प्रकार के होते हैं
 i . मानव शक्ति द्वारा चालित यंत्र 
ii . पशु शक्ति द्वारा चालित यंत्र 
iii . यान्त्रिक शक्ति द्वारा चालित यंत्र 

.
7 . सिंचाई के लिए पानी उठाने के यंत्र
 - जमीन में नीचे से या सतह पर से पानी उठाने के लिए अनेक प्रकार के यंत्र उपयोग किये जाते हैं । 

8 . कुट्टी काटने की मशीन ( Chaff - Cutter )

9 . कोल्हू ( गन्ना पेराई हेतु )