शस्य विज्ञान का इतिहास
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‘इतिहास’
अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सस्यविज्ञान
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर
पर
सस्य
विज्ञान विषय
को
सन
1900 में
स्वतन्त्र रूप
से
स्वीकार किया
गया
और
संयुक्त राज्य
अमेरिका में
सन्
1908 में
सर्वप्रथम अमेरिकन सोसायटी ऑफ
एग्रोनामी की
स्थापना हुई।
इसी
क्रम
में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (
IARI ), नई दिल्ली के सस्यविज्ञान विभाग
में
सन्
1955 में
'इण्डियन सोसायटी ऑफ
एग्रोनामी' ( ISA ) की स्थापना का
गई
।
भारत में सस्यविज्ञान
का विकास
सस्यविज्ञान के
विकास
में भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान तथा जीवविज्ञान आदि विज्ञान की
शाखाओं
का
महत्वपूर्ण योगदान
है।
इन
विषयों
से
प्राप्त ज्ञान
के
आधार
पर
भारत
में
वैज्ञानिक कृषि
का
प्रारम्भ कुछ
महत्वपूर्ण फल
जैसे
गन्ना
, कपास
व
तम्बाकू को
उगाने
के
साथ
ही
हुआ
।
सन्
1870 में
कृषि
रजस्व
एवं
वाणिज्य विभाग
की
स्थापना हुई।
सन्
1880 में अकाल आयोग की सिफारिश पर
फसल
उत्पादन को
बढ़ाने
के
लिये
अलग
से
कृषि
विभाग
की
स्थापना की
गई।
सन्
1903 में
बिहार
राज्य
में पूसा नामक स्थान
पर
इपीरियल एग्रीकल्चर रिसर्च
इन्सटीट्यूट व
सन्
1912 में
गन्ना
प्रजनन
केन्द्र कोयम्बटूर (
तमिलनाडु ) में
स्थापित किया
गया।
तत्पश्चात् देश
में
बहुत
से
कृषि
अनुसंधान संस्थान और
कृषि
महाविद्यालय सन्
1929 में
प्रारम्भ किये
गये
।
सम्पूर्ण देश
में
कृषि
के
उत्थान
एवं
कृषि
उत्पादन को
बढ़ाने
के
लिये
केन्द्रीय स्तर
पर
दिल्ली
में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (
ICAR ) की
स्थापना सन्
1929 में
की
गई।
सन्
1936 में भूकम्प के पश्चात् इम्पीरियल एग्रीकल्चर रिसर्च
इन्सटीट्यूट को
पूसा
से
दिल्ली
में
स्थानान्तरित किया
गया।
सन्
1964 के
लगभग
कृषि
विश्वविद्यालयों की
स्थापना भारत
के
विभिन्न राज्यों में
की
गई।
सस्यविज्ञान के मूल सिद्धान्त
अधिकतम
फसल
उत्पादन एवं
उचित
मृदा
प्रबन्ध हेतु
अपनाये
जाने
वाले
सस्य
विज्ञान के
मूल
सिद्धान्तों का
अध्ययन
निम्नलिखित शाखाओं
के
अन्तर्गत किया
जाता
है
-
1 . मौसम विज्ञान
2 . भूमि एवं
भू-परिष्करण क्रियायें ( Soil
and Tillage Fractices )
3 . भूमि एवं
जल
संरक्षण
4 . शुष्क कृषि
5 . भूमि उर्वरता व
उर्वरक
उपयोग
6 . सिंचाई जल
प्रबन्ध
7 . खरपतवार प्रबन्ध
8 . फसल एवं
फसल
प्रणाली
9 . स्थाई कृषि
( Susatainable Agriculture )
10 . बीज गुणवत्ता एवं
बौने
का
समय