बाजरा की खेती से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न

 

बाजरा की खेती से महत्वपूर्ण प्रश्न जो PGT /TGT Agriculture मे पूछे जाते |

 

·        बाजरा के अन्य नाम- पर्ल मिलेट, बुलरस मिलेट, स्पकड मिलेट इत्यादि |

·        वानस्पतिक नाम- पेनिसेटम ग्लोकम

·        कुम- ग्रेमानी

·        उत्पत्ति- भारत ( कुछ विद्वानो के अनुसार अफ्रीका भी बताया जाता  है )

·        इसे गरीबो का भोजन कहा जाता है |

·        यह कम पानी वाली फसल है |

·        बाजरा में 11॰ 6 % प्रोटीन पायी जाती हए |

·        5 % वसा होता है |

·        बाजरा अनुसंधान केंन्द्र जोधपुर मे है |

बाजरा मनुष्य व पशु दोनों के काम आता है

मनुष्य – उवालकर, भून कर, रोटिया बनाकर, बियर बनती है |

पशु- हारा चारा, सूखा चारा, मुर्गी का भोजन आदि |

विश्व मे बाजरा – प्रमुख रूप में बाजरा उगाने वाले महादीप के नाम अफ्रीका, एवं एशिया महादीप आदि |

चीन, भारत, पाकिस्तान, अरब, फारस, मिस्त्र, दक्षिण, पश्चिम अफ्रीका, रूस, वेस्टाइडीज़ आदि |

भारत – अधिक वर्षा वाले क्षेत्रो को छोड़ कर अन्य सभी क्षेत्रो मे बाजरा पाया जाता है \

सर्वाधिक – राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश आदि |

उत्तर प्रदेश- आगरा, बरेली, कानपुर के पूरे मण्डल सर्वाधिक उगाया जाता है |

बाजरा के लिए उन्नतशील प्रजातियाँ- 

संकुल

राज-171,  आई.सी.टी.पी.-8203,  न.दे.यफ.बी.-3 (नरेन्द्र चारा बाजरा-3),  आई.सी.एम.बी-155 डब्लू.सी.सी.

संकर प्रजातियाँ –

पूसा-322, पूसा-23,  आई.सी.एम.एच.-451

भूमि का चुनाव –

बाजरा के लिए हल्की या दोमट बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है। भूमि का जल निकास उत्तम होना आवश्यक हैं।

 

खेत की तैयारी  करना –

पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य 2-3 जुताइयां देशी हल अथवा कल्टीवेटर से करके खेत तैयार कर लेना चाहिए।

 

बुवाई का समय तथा बिधि-

बाजरे की बुवाई जुलाई के मध्य से अगस्त से मध्य तक सम्पन्न कर लें। बुवाई 50 सेमी. की दुरी पर 4 सेमी. गहरे कूंड में हल के पीछे करें।

बीज़ दर –

4-5 किलोग्राम प्रति हे |

 

बीज का उपचार –

यदि बीज उपचारित नहीं है तो बोने से पूर्व एक किग्रा. बीज को थीरम के 2.50 ग्राम से शोधित कर लेना चाहिए। अरगट के दोनों को 20 प्रतिशत नमक के घोल में डुबोकर निकाला जा सकता है।

 

उर्वरक का प्रयोग –

मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करें। यदि परीक्षण के परिणाम उपलब्ध न हो तो संकर प्रजाति के लिए 80-100 किलोग्राम नत्रजन] 40 किलोग्राम फास्फोरस, एवं 40 किलोग्राम पोटाश तथा देशी प्रजाति के लिए 40-45 किग्रा. नत्रजन, 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हे. प्रयोग करें। फास्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई से पहली बेसल ड्रेसिंग और शेष नत्रजन की आधी मात्रा टापड्रेसिंग के रूप में जब पौधे 25-30 दिन के हो जाने पर देनी चाहिए।

 

निराई-गुड़ाई –

बाजरा की खेती में निराई-गुड़ाई का अधिक महत्व है। निराई-गुड़ाई द्वारा खरपतवार नियंत्रण के साथ ही आक्सीजन का संचार होता है जिससे वह दूर तक फैल कर भोज्य पदार्थ को एकत्र कर पौधों को देती है।

सिचाई –

खरीफ में फसल की बुवाई होने के कारण वर्षा का पानी ही उसके लिए पर्याप्त होता है। इसके अभाव में एक या दो सिंचाई फूल आने पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिए।

 

फसल सुरक्षा

रोग –

1 बाजरा का अरगट

पहचान

यह रोग केवल भुट्टों के कुछ दानों पर ही दिखार्इ देता हैं इसमें दाने के स्थान पर भूरे काले रंग के सींक के आकार की गांठे बन जाती है। जिन्हें स्केलेरेशिया कहते है। संक्रमित फूलों में फफूंद विकसित होती है जिनमें बाद में मधु रस निकलता है। प्रभावित दाने मनुष्यों एवं जानवरों के लिए हानिप्रद होते है।

 उपचार –

  • खेत की गहरी जुताई करें।
  • फसल चक्र सिद्धान्त का प्रयोग करें।
  • फसल एवं खरपतवारों के अवशेषों को नष्ट करें।
  • सिंचाई का समुचित प्रबन्ध करें।
  • उन्नतशील/संस्तुत प्रजातियों की ही बुवाई करें।
  • बीजशोधन हेतु थिरम 75 प्रतिशत डब्लू.एस.2.5 ग्राम अथवा कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 ग्राम अथवा मेटालैक्सिल 35 प्रतिशत डब्लू.एस. की 6.0 ग्राम प्रति किग्रा.बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
  • अप्रमाणित बीजों को 20 प्रतिशत नमक के घोल से शोधित कर साफ पानी से 4-5 बार धोकर बुवाई के लिए प्रयोग करना चाहिए।
  • निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे. बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये।
  • जिरम 80 प्रतिशत डब्लू.पी.2.0 किग्रा. अथवा मैकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. 2.0 किग्रा.

बाजरा का कंडुआ रोग –

पहचान

कन्डुआ रोग से बीज आकार में बड़े गोल अण्डाकार हरे रंग के होते हैं] जिसमें काला चूर्ण भरा होता हैं।

उपचार –

  • खेत की गहरी जुताई करें।
  • फसल चक्र सिद्धान्त का प्रयोग करें।
  • फसल एवं खरपतवारों के अवशेषों को नष्ट करें।
  • सिंचाई का समुचित प्रबन्ध करें।
  • रोग ग्रसित बालियों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए
  • बीजशोधन हेतु थिरम 75 प्रतिशत डब्लू.एस. 2.5 ग्राम अथवा कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 ग्राम अथवा मेटालैक्सिल 35 प्रतिशत डब्लू.एस.की 6.0 ग्राम प्रति किग्रा.बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
  • निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे. बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए
  • जिरम 80 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 ग्राम अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 ग्राम अथवा मैकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. 2.0 किग्रा.

बाजरे का हरित बाली रोग –

पहचानः इनमें बाजरा की बालियों के स्थान पर टेढ़ी-मेढ़ी हरी-हरी पत्तियॉ सी बन जाती हैं] जिससे पूर्ण बाली झाडू के समान दिखाई देती हैं। पौधों बौने रह जाते हैं।

उपचार –

  • खेत की गहरी जुताई करें।
  • फसल चक्र सिद्धान्त का प्रयोग करें।
  • फसल एवं खरपतवारों के अवशेषों को नष्ट करें।
  • सिंचाई का समुचित प्रबन्ध करें।
  • उन्नतशील /संस्तुत प्रजातियों की ही बुवाई करें।
  • रोग के लक्षण दिखाई देते ही कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू.पी. अथवा थायोफिनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2 ग्राम मात्रा प्रति ली. पानी में घोलकर 10 दिन के अन्तराल पर दो छिड़काव करना चाहिए।
  • अत्यधिक प्रकोप की दशा में ग्रसित पौधों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए।

कीट

दीमक –

खड़ी फसल में प्रकोप होने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई.सी. 2.5 ली. प्रति हे. की दर से प्रयोग करें।

2 सूत्रक्रमी –

रसायनिक नियंत्रण हेतु बुवाई से एक सप्ताह पूर्व खेत में 10 किग्रा. फोरेट 10 जी फैलाकर मिला दें।

3 ताना छेदक कीट -

निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे. बुरका/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 किग्रा. अथवा फोरेट 10 प्रतिशत सी.जी. 20 किग्रा.अथवा डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. 1.0 ली. प्रति हे. अथवा क्युनालफास 25 प्रतिशत ई.सी 1.50 लीटर

 

प्रोहर मक्खी -

निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसाययन को प्रति हे. बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 किग्रा. अथवा फोरेट 10 प्रतिशत सी.जी. 20 किग्रा. अथवा डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. 1.0 ली. प्रति हे. अथवा क्युनालफास 25 प्रतिशत ई.सी 1.50 लीटर

 

मुख्य बिन्दु –

  • क्षेत्र की अनुकूलता के अनूसार संस्तुत प्रजाति का शुद्ध बीज ही प्रयोग करें।
  • उपचारित बीज बोयें।
  • मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरकों को प्रयोग करें।
  • फूल आने पर वर्षा के अभाव में पानी अवश्य दें।
  • कीट/बीमारियों का समय से नियंत्रण अवश्य करें।