सांवा की फसल

 

सांवा की फसल से संबन्धित महत्वपूर्ण जानकारी


 

·      वानस्पतिक नाम -  इकीनोक्लोआ क्रुसगली

( Echinochloa Crugalli Var Frumentaceae )

·      कुल – ग्रेमिनी

·      महत्व – इसका उपयोग चावल की तरह उबालकर भात     बनाकर खाते है |

ü जानवर – चारे के लिए

ü मनुष्य – भोजन के लिए, दाने के रूप में |

 

Ø 9.2% प्रोटीन

Ø 65.5% कार्वोहाइड्रेड

Ø 4.5% वसा

Ø 9.7% रेशा आदि पाए जाते |

 

उत्पत्ति- भारत में प्राचीन ग्रंथो में सावा का महत्वपूर्ण वर्णन है |

सावा की उत्पत्ति मध्य एशिया

क्षेत्रफल –  भारत, चीन, जापान, मलेशिया आदि

भारत –   मध्य-प्रदेश , उत्तर प्रदेश, तमिलनाडू, आंध्र-प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार आदि |

उत्तर प्रदेश – गढ़वाल, कुमायु, वाराणसी मे अधिक पायी जाती है, बलिया, आजमगढ़, मिर्ज़ापुर मे भी होता है |

जलवायु- शुष्क मौसम तथा अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में |

भूमि-   सूखा रोधी एवं बाढ़ रोधी क्षमता होती है |

दलदली, भारी भूमियां में सावा की फसल उगाई जाती |

उन्नत जाति – के-1, टा-45,46, VL-1,BL मदिरा 8, IP149, UPT-8, IPM-148 |

वोने का समय – जून का अंतिम तथा जुलाई का प्रथम सप्ताह |

बीज की मात्रा-  8-10 kg/ha

खाद तथा उर्वरक-  50,30,20,- NPK

रोग –               

·      म्रदुरोमिल आसिता

·      कंडुवा रोग

·      किट्टी ( जेरूई ) रोग