शस्य विज्ञान के सिद्धान्त Principles Of Agronomy

 

शस्य विज्ञान के सिद्धान्त Principles Of Agronomy

 


शस्य विज्ञान Agronomy

 

शस्य विज्ञान ( Agronomy ) शब्द ग्रीक भाषा के ' एग्रोनोमोस ' ( Agronomos ) शब्द से लिया गया है , जिसका अर्थ भूमि प्रबन्ध से है अर्थात् एग्रोस Agros ) , जिसका अर्थ " खेत ' है और नोमोस ( Nomo’s ) जिसका अर्थ ' प्रबन्ध ' है अर्थात् ' भूमि का प्रबन्ध "

 

परिभाषा (Definition)

 

" शस्य विज्ञान कृषि की महत्त्वपूर्ण शाखा है , जो फसल उत्पादन एवं भूमि प्रबन्ध की विभिन्न क्रियाओं की कला दक्षता एवं वैज्ञानिक सिद्धान्तों का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करती है । "

" शस्य विज्ञान कृषि की वह शाखा है , जो फसल उत्पादन और भूमि प्रबन्ध के सिद्धान्तों और क्रियाओं से सम्बन्ध रखती है । "

 

सर्वप्रथम शस्य विज्ञान में अनुसन्धान कार्य

 

सर्वप्रथम शस्य विज्ञान में अनुसन्धान कार्य 1834 ई . में एलसेस नामक स्थान पर जे बी बोसिगाल्ट नामक कृषि वैज्ञानिक द्वारा प्रथम अनुसन्धान केन्द्र स्थापित करने पर आरम्भ हुआ ।

शस्य विज्ञान को कृषि विज्ञान की एक अलग शाखा के रूप में 20 वीं शताब्दी में मान्यता मिली तथा वर्ष 1908 में अमेरिकन ' सोसाइटी ऑफ एग्रोनोमी ' की स्थापना हुई , जिसके कारण शस्य विज्ञान के क्षेत्र में काफी उन्नति हुई ।

 

शस्य विज्ञान का क्षेत्र एवं महत्व

 

मनुष्य की अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति विभिन्न फसलों द्वारा की जाती है । लेकिन भारत की जनसंख्या दिन - प्रतिदिन बढ़ती जा रही है । इस बढ़ती जनसंख्या की आववश्यकता की पूर्ति करना भी एक समस्या है ।

इस समस्या से निपटने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जा सकते हैं

 

 

·        भूमि का क्षेत्रफल बढ़ाकर , जो सम्भव नहीं है ।

·        प्रति इकाई क्षेत्र में सघन खेती अपनाकर , इससे समस्या का समाधान शीघ्र हो सकता है ।

·        हमारे देश में उर्वरकों , सिंचाई , फसल सुरक्षा , कृषि तकनीकी का ज्ञान कम है , इनको बढ़ाकर या सुधारकर स्थिति का सुधार सम्भव है ।

·        फसलों की उपज पर विभिन्न कारकों ; जैसे - जलवायु मृदा , खेत की तैयारी , बुवाई का समय , फसल की जातियाँ , बुवाई का तरीका , खाद एवं सिंचाई की मात्रा , खरपतवार , बीमारी , कटाई , मड़ाई आदि का प्रभाव पड़ता है ।

इन सभी कारकों को ठीक करके उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है ।