सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी)

    सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी)            (आलोक वर्मा)

     

    ·      सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का परिचय

    ·      संचार माध्यमों की प्रकृति

    ·      संचार माध्यम

    ·      संचार प्रक्रिया क्या है ? संचार प्रक्रिया

    ·      संचार के प्रकार

    ·      आधुनिक समय में संचार के साधन के प्रकार नाम

    ·      शिक्षा के क्षेत्र में सूचना संचार का महत्व

    ·      डाटा प्रेषण सेवा (Data Transmission Service)

    ·      सूचना संचार प्रौद्योगिकी की उपयोगिता

    ·      सूचना संचार प्रौद्योगिकी के लाभ

     

     

    1.    सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का परिचय

    सूचना और संचार की प्रौद्योगिकी या सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, जिसे आम तौर पर आईसीटी (ICT) कहा जाता है, का प्रयोग अक्सर सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) के पर्यायवाची के रूप में किया जाता है लेकिन यह आम तौर पर अधिक सामान्य शब्दावली है,

    जो आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी में दूरसंचार (टेलीफोन लाईन एवं वायरलेस संकेतों) की भूमिका पर जोर देती है। आईसीटी में वे सभी साधन शामिल होते हैं जिनका प्रयोग कंप्यूटर एवं नेटवर्क हार्डवेयर दोनों और साथ ही साथ

    आवश्यक सॉफ्टवेयर सहित सूचना एवं सहायता संचार का संचालन करने के लिए किया जाता है। दूसरे शब्दों में, आईसीटी (ICT) में आईटी (IT) के साथ-साथ दूरभाष संचार, प्रसारण मीडिया और सभी प्रकार के ऑडियो और वीडियो प्रक्रमण एवं प्रेषण शामिल होता है। इस अभिव्यक्ति का सबसे पहला प्रयोग 1997 में डेनिस स्टीवेंसन द्वारा ब्रिटेन की सरकार को भेजी गई एक रिपोर्ट में किया गया था एवं  2000 में ब्रिटेन के नये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संबंधी दस्तावेजों द्वारा प्रचारित इसका प्रचार किया गया ।

    अक्सर आईसीटी (ICT) का प्रयोग "आईसीटी (ICT) रोडमैप" में उस मार्ग को सूचित करने के लिए किया जाता है जिसे कोई संगठन अपनी आईसीटी (ICT) जरूरतों के साथ अपनाएगा |

    अब आईसीटी (ICT) शब्द का प्रयोग टेलीफोन नेटवर्कों का कंप्यूटर नेटवर्कों के साथ एक एकल केबल या लिंक प्रणाली के माध्यम से संयुग्मन (अभिसरण) करने के लिए भी किया जाता है। टेलीफोन नेटवर्कों का कंप्यूटर नेटवर्क प्रणाली के साथ संयुग्मन करने के व्यापक आर्थिक लाभ (टेलीफोन नेटवर्क की समाप्ति के कारण भारी लागत बचत) हैं। वीओआईपी (VOIP) देखें. बदले में इसने संगठनों के विकास को प्रेरित किया है जिसमें उनके नाम में आईसीटी शब्द का प्रयोग दो नेटवर्क प्रणालियों के संयुग्मन करने की प्रक्रिया में उनकी विशेषज्ञता को सूचित करने के लिए किया जाता है ।

     

    2.   संचार माध्यम

    संचार माध्यम (Communication Medium) से आशय है | संदेश के प्रवाह में प्रयुक्त किए जाने वाले माध्यम। संचार माध्यमों के विकास के पीछे मुख्य कारण मानव की जिज्ञासु प्रवृत्ति का होना है। वर्तमान समय में संचार माध्यम और समाज में गहरा संबन्ध एवं निकटता है। इसके द्वारा जन सामान्य की रूचि एवं हितों को स्पष्ट किया जाता है। संचार माध्यमों ने ही सूचना को सर्वसुलभ कराया है। तकनीकी विकास से संचार माध्यम भी विकसित हुए हैं तथा इससे संचार अब ग्लोबल फेनोमेनो बन गया है।

    संचार माध्यम, अंग्रेजी के "मीडिया" (मिडियम का बहुवचन) से बना है, जिसका अभिप्राय होता है दो बिंदुओं को जोड़ने वाला। संचार माध्यम ही संप्रेषक और श्रोता को परस्पर जोड़ते हैं। हे

    राल्ड लॉसवेल के अनुसार, संचार माध्यम के मुख्य कार्य सूचना संग्रह एवं प्रसार, सूचना विश्लेषण, सामाजिक मूल्य एवं ज्ञान का संप्रेषण तथा लोगों का मनोरंजन करना है।

     

    संचार माध्यम का प्रभाव समाज में अनादिकाल से ही रहा है। परंपरागत एवं आधुनिक संचार माध्यम समाज की विकास प्रक्रिया से ही जुड़े हुए हैं। संचार माध्यम का श्रोता अथवा लक्ष्य समूह बिखरा होता है। इसके संदेश भी अस्थिर स्वभाव वाले होते हैं। फिर संचार माध्यम ही संचार प्रक्रिया को अंजाम तक पहुँचाते हैं।

    संचार शब्द

    संचार शब्द अंग्रेजी के कम्युनिकेशन का हिन्दी रूपांतर है जो लैटिन शब्द कम्युनिस से बना है, जिसका अर्थ है सामान्य भागीदारी युक्त सूचना। चूंकि संचार समाज में ही घटित होता है, अत: हम समाज के परिप्रेक्ष्य से देखें तो पाते हैं कि सामाजिक संबन्धों को दिशा देने अथवा निरंतर प्रवाहमान बनाए रखने की प्रक्रिया ही संचार है। संचार समाज के आरंभ से लेकर अब तक के विकास से जुड़ा हुआ है।

     

    परिभाषाएं-

    प्रसिद्ध संचारवेत्ता डेनिस मैक्वेल के अनुसार, " एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक अर्थपूर्ण संदेशों का आदान प्रदान है।

    डॉ॰ मरी के मत में, "संचार सामाजिक उपकरण का सामंजस्य है।"

    लीगैन्स की शब्दों में, " निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया निरंतर अन्तक्रिया से चलती रहती है और इसमें अनुभवों की साझेदारी होती है।"

    राजनीति शास्त्र विचारक लुकिव पाई के विचार में, " सामाजिक प्रक्रियाओं का विश्लेषण ही संचार है।"

    इस प्रकार संचार के संबन्ध में कह सकते हैं कि इसमें समाज मुख्य केन्द्र होता है जहाँ संचार की प्रक्रिया घटित होती है। संचार की प्रक्रिया को किसी दायरे में बांधा नहीं जा सकता। फिर संचार का लक्ष्य ही होता है- सूचनात्मक, प्रेरणात्मक, शिक्षात्मक व मनोरंजनात्मक।

     

    3.   संचार माध्यमों की प्रकृति

    भारत में प्राचीन काल से ही के दुनिया में सबसे अच्छा नीतीश है का अस्तित्व रहा है। यह अलग बात है कि उनका रूप अलग-अलग होता था। भारत में संचार सिद्धान्त काव्य परपंरा से जुड़ा हुआ है। साधारीकरण और स्थायीभाव संचार

    सिद्धान्त से ही जुड़े हुए हैं। संचार मुख्य रूप से संदेश की प्रकृति पर निर्भर करता है। फिर जहाँ तक संचार माध्यमों की प्रकृति का सवाल है तो वह संचार के उपयोगकर्ता के साथ-साथ समाज से भी जुड़ा होता है। चूंकि हम यह भी पाते हैं कि संचार माध्यम समाज की भीतर की प्रक्रियाओं को ही उभारते हैं। निवर्तमान शताब्दी में भारत के संचार माध्यमों की प्रकृति व चरित्र में बदलाव भी हुए हैं लेकिन प्रेस में मुख्यत: तीन-चार गुणात्मक परिवर्तन दिखाई देते हैं-

    पहला : शताब्दी के पूर्वाद्ध में इसका चरित्र मूलत: मिशनवादी रहा, वजह थी स्वतंत्रता आंदोलन व औपनिवेशिक शासन से मुक्ति। इसके चरित्र के निर्माण में तिलक, गांधी, माखनलाल चतुर्वेदी, विष्णु पराडकर, माधवराव सप्रे जैसे व्यक्तित्व ने योगदान किया था।

    दूसरा : 15 अगस्त 1947 के बाद राष्ट्र के एजेंडे पर नई प्राथमिकताओं का उभरना। यहाँ से राष्ट्र निर्माण काल आरंभ हुआ और प्रेस भी इसके संस्कारों से प्रभावित हुआ। यह दौर दो दशक तक चला।

    तीसरा : सातवें दशक से विशुद्ध व्यावसायिकता की संस्कृति आरंभ हुई। वजह थी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का विस्फोट।

    चौथा : अन्तिम दो दशकों में प्रेस का आधुनिकीकरण हुआ, क्षेत्रीय प्रेस का एक `शक्ति` के रूप में उभरना और पत्र-पत्रिकाओं से संवेदनशीलता एवं दृष्टि का विलुप्त होना।

     

    इसके इतर आज तो संचार माध्यमों की प्रकृति अस्थायी है। इसके अपने वाजिब कारण भी हैं हालांकि इसके अलावा अन्य मकसद से भी संचार माध्यम बेतुकी ख़बरें व सूचनाएं सनसनीखेज तरीके से परोसने लगे हैं।

     

    संचार प्रक्रिया क्या है |

    4.   संचार प्रक्रिया (Communication Process)

           संचार प्रक्रिया वह है जो संदेश देने वाला (संचारक) एवं संदेश प्राप्त करने वाला (प्रापक) के बीच निरन्तर चलती रहती है| संचार प्रक्रिया में संचारक, संदेश और प्रापक तीन प्रमुख मूल तत्व होते है जिनसे संचार प्रक्रिया प्रारम्भ होती है| संचारक एवं प्रापक की संदेश संचरण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है|     


           संचार प्रक्रिया में संचारक तथ्यों, सूचनाओं, विचारों, अभिमतों एवं भावनाओं का विभिन्न प्रतीकों, चिन्हों या संकेतों के द्वारा लिखित या मौखिक रूप में अभिव्यक्त करता है, संचारक संदेश सम्प्रेषण के लिए किसी माध्यम का चयन करता है जिनसे संदेश प्राप्तकर्ता तक पहुँच सके|

    अतः स्पष्ट है की संचार एक सतत एवं टू-वे प्रक्रिया है| संचारक एवं प्रापक के मध्य संदेश के आदान-प्रदान की निरन्तर प्रक्रिया जो आपसी सहयोग से बनती है, वह प्रतिपुष्टि पर निर्भर करती है| प्रापक प्राप्त संदेश को ग्रहण करने


    के बाद उसकी व्याख्या करता है और उसकी प्रतिक्रिया करता है| प्रतिक्रिया के द्वारा ही संचारक को संदेश के प्रति प्रतिपुष्टि प्राप्त होती है और संदेश में परिमार्जन या संसोधन करता है|

         संदेश संचरण में ही संचारक ही निश्चित करता है ही उसे कब और क्या करना है और किस संचार माध्यम के द्वारा संदेश का संचरण किया जाना है अर्थात् सम्पूर्ण संचार प्रक्रिया का निर्धारण करता है| संचारक ही निश्चित करता है की उसे संदेश में क्या भेजना है और क्या नही अर्थात् संदेश निर्माण में संचारक की अहम भूमिका होती है|  

       संचार प्रक्रिया के कुछ घटक या तत्व होते है जिनसे संचार किया जाता है| इन घटकों के बिना संचार अपूर्ण रहता है और संचार में प्रत्येक घटक की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है| एक भी घटक के अभाव होने से संचार की भावशीलता  कम हो जाती है| संचार प्रक्रिया के प्रमुख तत्वों को उनके महत्व व स्थान के अनुसार समझ सकते है----


            उपरोक्त रेखाचित्र के अनुसार संचारक वह व्यक्ति है जो संचार प्रक्रिया को आरम्भ करता है संचारक ही संप्रेषित किये जाने वाले संदेश को एन्कोडिंग करता है, संदेश शाब्दिक या अशाब्दिक हो सकता है या कोई लिखित तथ्य, प्रतीक चिन्ह हो सकते है| माध्यम वह है जिसके द्वारा संदेश को प्रापक तक पहुँचाना है| प्रापक वह है जो संदेश प्राप्तया ग्रहण होने पर उसकी डिकोडिंग करता है और उसकी व्याख्या करता है, संदेश ग्रहण करने के बाद प्रापक संदेश के प्रति अपनी

    प्रतिपुष्टि व्यक्त करता है अर्थात् अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है| शोर वह है जो सम्पूर्ण संचार प्रक्रिया को प्रभावित करता है अतः संचार प्रक्रिया एक सतत प्रक्रिया है जो इन घटकों से होकर गुजरती है| संचार प्रकिया में संचारक एवं प्रापक की अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है|

     

    5.   संचार के प्रकार

    संचार के कुछ प्रमुख प्रकारों का उल्लेख किया गया है जो संचार की प्रक्रिया को महत्वपूर्ण आधार प्रदान करते हैं-

    ·      औपचारिक एवं अनौपचारिक संचार

    ·      अन्तर्वैयक्तिक एवं जन-संचार

    ·      मौखिक संचार

    ·      लिखित संचार

    ·      अमौखिक संचार

    ·      अन्तर्वैयक्तिक संचार

    ·      जन-संचार

     

    1.   औपचारिक संचार

    औपचारिक संचार किसी संस्था में विचारपूर्वक स्थापित की जाती है। किस व्यक्ति को किसको और किस अन्तराल में सूचना देनी चाहिए, यह किसी संस्था में विभिन्न स्तरों पर कार्यरत् व्यक्तियों के मध्य सम्बन्धों को स्पष्ट करने में सहायक होता है। औपचारिक सन्देशवाहन के निर्माण व प्रेषण में अनेक औपचारिक सम्वाद अधिकांशत: लिखित होते हैं।

    औपचारिक संचार के लाभ -

    ·      औपचारिक संचार अधिकृत संचार कर्ता के द्वारा सही सूचना प्रदान की जाती है।

    ·      यह संचार लिखित रूप में होता है।

    ·      इस संचार के द्वारा संचार की प्रति पुष्टि होती है।

    ·      यह संचार व्यवस्थित एवं उचित तरीके से किया जाता है।

    ·      यह संचार करते समय संचार के स्तरों के क्रमों का विशेष ध्यान रखा जाता है।

    ·      इस संचार के माध्यम से संचारक की स्थिति का पता सरलता से लगाया जा सकता है।

    ·      इस संचार के द्वारा व्यावसायिक मामलों को आसानी से नियंत्रित एवं व्यवस्थित किया जा सकता है।

    ·      इस संचार के द्वारा दूर स्थापित लोगों से सम्बन्ध आसानी से स्थापित किये जा सकते हैं।

    औपचारिक संचार के दोष -

    ·      इस संचार की गति धीमी होती है।

    ·      समान्यतया इस संचार में उच्च अधिकृत लोगों का अधिभार ज्यादा होता है।

    ·      इस संचार में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से संचार की आलोचना नहीं की जा सकती है।

    ·      इस संचार में नियमों का शक्ति से पालन किया जाता है जिसंके कारण संचार में लोचशीलता के अभाव के कारण बाधा उत्पन्न होने की संभावना हमेशा विद्यमान रहती है।

     

    2.   अनौपचारिक संचार

    अनौपचारिक सन्देश वाहनों में किसी प्रकार की औपचारिकता नहीं बरती जाती। ऐसे सन्देशवाहन मुख्यत: पक्षकारों के बीच अनौपचारिक सम्बन्धों पर निर्भर करते हैं। अनौपचारिक सन्देशवाहन के कुछ उदाहरण है - नेत्रों से किये जाने वाले इशारे, सिर हिलाना, मुस्कराना, क्रोधित होना आदि।

    ऐसे संचार का दोष यह होता है कि सावधानी के अभाव में कभी-कभी अफवाहों को फैलाने में सहायक हो जाते हैं।

     

    अनौपचारिक संचार के लाभ -

    ·      इस संचार के द्वारा सौहार्द सम्बन्धी एवं संभावनाओं का आदान प्रदान होता है।

    ·      इस संचार के द्वारा संचार की गति अत्यधिक तेज होती है।

    ·      इस संचार में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से विचारों का आदान-प्रदान किया जाता है।

    ·      इस संचार के माध्यम से सम्बन्धों में व्याप्त तनाव में कमी आती है तथा लोगों के मध्य सांवेगिक सम्बन्ध स्थापित होते हैं।

    अनौपचारिक संचार के दोष -

    ·      इस संचार के द्वारा अविश्वसनीय तथा अपर्याप्त सूचना प्राप्त होती है।

    ·      इस संचार में सूचना प्रदान करने का उत्तरदायित्व निश्चित नहीं होता है तथा सूचना किस स्तर से तथा कहाँ से प्राप्त हुई है, का पता लगाना आसान नहीं होता है।

    ·      इस प्रकार का संचार ज्यादातर किसी भी संगठन में समस्या को उत्पन्न कर सकता है।

    ·      इस संचार में सूचना किस स्तर से तथा कहाँ से प्राप्त हो रही है का स्रोत निश्चित नहीं होता है जिसके कारण सूचना के उद्देश्यों की प्राप्ति तथा उसका अर्थ निरूपण करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

     

    3.   लिखित संचार

    लिखित संचार एक प्रकार औपचारिक संचार है जिसमें सूचनाओं का आदान-प्रदान लिखित रूप में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को प्रेषित किया जाता है इस संचार के द्वारा संचारक को लिखित रूप में प्रेषित किये गये संदेश का अभिलेख रखने में आसानी होती है।

    लिखित संचार के द्वारा यह स्पष्ट होता है कि आवश्यक सूचना प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्रदान की गई है। एक लिखित संचार सही, सक्षिप्त, पूर्ण तथा स्पष्ट होता है।

    लिखित संचार के साधन-बुलेटिन, हंडै बुक्स व डायरियां, समाचार पत्र, मैगजीन, सुझाव -योजनायें, व्यावहारिक पत्रिकायें, संगठन-पुस्तिकायें संगठन-अनुसूचियाँ, नीति- पुस्तिकायें कार्यविधि पुस्तिकायें, प्रतिवेदन, अध्यादेश आदि।

     

    लिखित संचार के लाभ -

    ·      लिखित सम्प्रेषण की दशा में दोनों पक्षों की उपस्थिति आवश्यक नहीं है

    ·      विस्तृत एवं जटिल सूचनाओं के सम्प्रेषण के लिए यह अधिक उपयुक्त है।

    ·      यह साधन मितव्ययी भी है क्योंकि डाक द्वारा समाचार योजना, दूरभाष पर बात करने की उपेक्षा सस्ता होता है।

    ·      लिखित संवाद प्रमाण का काम करता है तथा भावी संदभोर्ं के लिए इसका उपयोग किया जाता है।

    लिखित संचार के दोष -

    ·      लिखित संचार की दशा में प्रत्येक सूचना को चाहे वह छोटी हो अथवा बड़ी, लिखित रूप में ही प्रस्तुत करना पड़ता है जिनमें स्वभावत: बहुत अधिक समय व धन का अपव्यय होता है।

    ·      प्रत्येक छोटी-बड़ी बात हो हमेशा लिखित रूप में ही प्रस्तुत करना सम्भव नहीं होता।

    ·      लिखित संचार में गोपनीयता नहीं रखी जा सकती।

    ·      लिखित संचार का एक दोष यह भी है कि इससे लालफीताशाही का बढ़ावा मिलता है।

    ·      अशिक्षित व्यक्तियों के लिए लिखित स्म्प्रेषण कोई अर्थ नहीं रखता। मौखिक अथवा लिखित संचार के अपेक्षाकृत श्रेष्ठ कौन है, इसका निर्णय करना एक कठिन समस्या है। वास्तव में इसका उत्तर प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।

     

    4.   मौखिक संचार

    मौखिक संचार से तात्पर्य संचारक द्वारा किसी सूचना अथवा संवाद का मुख से उच्चारण कर संवाद प्राप्तकर्ता को प्रेरित करने से है। दूसरे शब्दों में, जो सूचनायें या संदेश लिखित न हो वरन् जुबानी कहें या निर्गमित किये गये हो उन्हें मौखिक संचार कहते हैं।

    इस विधि के अन्तर्गत संदेश देने वाला तथा संदेश पाने वाले दोनों एक-दूसरे के सामने होते है इस पद्धति में व्यक्तिगत पहुँच सम्भव होती है।

    लारेन्स एप्पले के अनुसार, ‘‘मौखिक शब्दों द्वारा पारस्परिक संचार सन्देशवाहन की सर्वश्रेष्ठ कला है।

    मौखिक संचार के साधन - आमने सामने दिये गये आदेश, रेडियो द्वारा संचार, दूरदर्शन, दूरभाष, सम्मेलन या साभाएँ, संयुक्त विचार-विमर्श, साक्षात्कार, उद्घोषणाएँ आदि।

    मौखिक संचार के लाभ -

    ·      इस पद्धति से समय व धन दोनों की बचत होती है।

    ·      इसे आसानी से समझा जा सकता है।

    ·      संकटकालीन अवधि में कार्य में गति लाने के लिए मौखिक पद्धति एक मात्र विधि होती है।

    ·      मौखिक संचार लिखित संचार की तुलना में अधिक लचीला होता है।

    ·      मौखिक संचार पारस्परिक सद्भाव व सद्विश्वास में वृद्धि करता है।

     

    मौखिक संचार के दोष -

    ·      मौखिक वार्ता को बातचीत के उपरान्त पुन: प्रस्तुत करने का प्रश्न ही नहीं उठता।

    ·      मौखिक वार्ता भावी संदर्भ के लिए अनुपयुक्त है।

    ·      मौखिक सन्देशवाहन में सूचनाकर्ता को सोचने का अधिक मौका नहीं मिलता।

    ·      खर्चीला

    ·      तैयारी की आवश्यकता।

    ·      अपूर्ण।

     

    5.   अमौखिक संचार

    यह संचार का प्रकार है जो न मौखिक होता है और न ही लिखित। इस संचार में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अमौखिक रूप से सूचना को प्रदान करता है, उदाहरण के रूप में-शारीरिक हाव-भाव के द्वारा। इस संचार में शारीरिक भाव-भंगिमा के माध्यम से संचार को प्रेषित किया जाता है। जिसे प्राप्तकर्ता अमौखिक रूप से सरलता से समझ जाता है, जैसे-चेहरे का भाव, आंखों तथा हाथ का इधर-उधर घूमना आदि के द्वारा भावनाओं, संवेगों, मनोवृत्तियों इत्यादि को असानी से समझ सकता है।

    अमौखिक संचार के लाभ -

    ·      इस संचार के द्वारा भावनाओं, संवेगों, मनोवृत्ति इत्यादि को कम समय में प्रेषित किया जा सकता है।

    ·      इस संचार को एक प्रकार से मौखिक संचार का प्रारूप माना जा सकता है जिसमें मौखिक संचार के लाभों एवं दोषों को शामिल किया जा सकता है।

    ·      इस संचार के द्वारा लोगों को प्रेरित, प्रभावित तथा एकाग्रचित किया जा सकता है।

     

    6.   अन्तर्वैयक्तिक संचार

    अन्र्तवैयक्तिक संचार का एक प्रकार हैं जिसमें संचारकर्ता तथा प्राप्तकर्ता एक-दूसरे के आमने-सामने होते हैं। अन्र्तवैयक्तिक संचार लिखित अथवा मौखिक दोनों रूप में हो सकते हैं, अन्र्तवैयक्तिक संचार के अन्तर्गत लिखित रूप

     

     

    में यथा पत्र, डायरी इत्यादि को शामिल किया जा सकता है जबकि मौखिक संचार में टेलिफोन, आमने-सामने की बातचीत इत्यादि को शामिल कर सकते हैं।

    अन्तर्वैयक्तिक संचार के लाभ -

    ·      इस संचार के द्वारा संचारक तथा प्राप्तकर्ता के मध्य सामने-सामने के सम्बन्ध होते हैं। जिसके कारण मौखिक संदेश की गोपनीयता बनी रहती हैं।

    ·      इस संचार में संचारक तथा प्राप्तकर्ता ही होते हैं जिसके कारण सूचना अन्य लोगों के पास नहीं जा पाती है।

     

    7.   जन-संचार

    जन-संचार, संचार का एक माध्यम हैं जिसके द्वारा कोई भी संदेश अनेक माध्यमों के द्वारा जन-समुदाय तक पहुंचाया जाता है। वर्तमान समय में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो जन-संचार माध्यम से न जुड़ा हो। सच पूछा जाय तो आज के मनुष्य का विकास जन-संचार के माध्यमों द्वारा ही हो रहा है।

    जन-समुदाय की आवश्यकताओं को पूरा करने में जन-संचार माध्यमों की बड़ी भूमिका होती है। जो कि सभी वर्ग, सभी कार्य क्षेत्र से जुड़े लोगों तथा सभी उम्र के लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करने में सहायता प्रदान करते हैं वर्तमान समय में जन-संचार के अनेक माध्यम हैं, जैसे-समाचार पत्र/पत्रिकायें, रेडियों, टेलीविजन, इंटरनेट इत्यादि।

     

    संचार के सिद्धांत

    संचार की प्रक्रिया विभिन्न अध्ययनों के पश्चात स्पष्ट होता है कि संचार को आधार प्रदान करने के लिए सिद्धांत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

    1. उद्देश्यों के स्पष्ट होने का सिद्धांत-संचार की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि संचार के उद्देश्य विशिष्ट एवं स्पष्ट हों जिससे की प्राप्तकर्ता संचार के विषय को सार्थक रूप से समझ सके।

    2. श्रोताओं के स्पष्ट ज्ञान का सिद्धांत-संचार की सफलता के लिए आवश्यक है कि संचारक को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि श्रोतागण कैसे हैं जिससे प्रेषित किये जाने वाले विषय को श्रोता के ज्ञान एवं उनकी इच्छा के अनुसार सारगर्भित रूप में प्रेषित किया जा सके। इसके अतिरिक्त इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि संचार को श्रोतागण आसानी से समझ सके।

    3. विश्वसनीयता बनाये रखने का सिद्धांत-संचारक के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह समुदाय में अपनी स्थिति प्रास्थिति को बनाये रखे क्योंकि संचारक के द्वारा प्रेषित किये जाने वाला संचार संचारक के सामथ्र्य पर निर्भर करता है यदि समुदाय के लोगों को इस बात का विश्वास होता है कि संचारक समुदाय के हित के लिए संदेश को प्रेषित करेगा।

    4. स्पष्टता का सिद्धांत-संचार में प्रयोग की जाने वाली भाषा एवं प्रेषित किये जाने वाला विषय सरल एवं समरूप होना चाहिए जिससे कि संचार को लोग आसानी से समझ सके। संचार करते समय यदि क्लिष्ट भाषा का प्रयोग किया जाता है तो संचार की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

    5. शब्दों को सोच-विचार कर प्रेषित एवं संगठित करने का सिद्धांत-संचारक के लिए आवश्यक होता है कि संचार में प्रयोग किये जाने वाले शब्दों का चयन उचित प्रकार से किया जाये तथा विचारों में तारतम्यता निहित हो। यदि संचार करते समय शब्दों का चयन कुछ सोच-समझकर नहीं किया जाता है और शब्दों के मध्य तारतम्यता तथा एकरूपता नहीं होता है तो प्राप्तकर्ता संचार के उद्देश्यों को समझ नहीं पाता है।

    6. सूचना की पर्याप्तता का सिद्धांत-संचारक के लिए यह आवश्यक होता है कि संचार करते समय सूचना पर्याप्त रूप में प्रेषित की जाये इसके लिए यह भी आवश्यक होता है कि सूचना किस स्तर पर प्रेषित की जा रही है। सूचना की अपर्याप्तता के कारण प्राप्तकर्ता संचार के उद्देश्यों का अर्थ निरूपण विपरित लगा सकता है जिसके कारण संचार के असफल होने की संभावना उत्पन्न हो जाती है।

    7. सूचना के प्रसार का सिद्धांत-संचार की सफलता के लिए आवश्यक होता है कि सूचना का प्रसार सही समय पर, सही परिपेक्ष््र य में, सही व्यक्ति को उचित कारण के संदर्भ में पे्रषित की जाये तथा सूचना प्रसारित करते समय इस तथ्य का भी ध्यान रखा जाय कि सूचना प्राप्तकर्ता कौन है यदि संचारक सूचना प्रेषित करते समय, परिप्रेक्ष्य, उचित व्यक्ति तथा स्पष्ट उद्देश्य का ध्यान नहीं रखता है तो संचार असफल हो जाता है।

    8. सघनता एवं सम्बद्धता का सिद्धांत-सफल संचार के लिए आवश्यक है कि सूचना में सघनता एवं सम्बद्धता का तत्व विद्यमान हो, सूचना को प्रदान किये जाने का क्रम 666 क्रियान्वित किया जा सके।

    9. एकाग्रता का सिद्धांत-संचार की सफलता के लिए आवश्यक है कि संचारक एवं प्राप्तकर्ता दोनों एकाग्रचित्त होकर कार्य करे। संचारक के लिए आवश्यक है कि संचार प्रेषित करते समय अपनी एकाग्रता को भंग न होने दे तथा प्राप्तकर्ता के लिए भी यह आवश्यक होता है कि वह एकाग्रचित होकर के प्रेषित संचार का अर्थ निरूपण करे।

    10. समयबद्धता का सिद्धांत-संचार तभी सफल हो सकता है जब वह उचित तथा निश्चित समय पर किया जाये। संचार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि संचार करते समय संचार के उद्देश्यों की प्राप्ति सही समय पर हो पायेगी अथवा नहीं।

    11. पुर्ननिर्देशन का सिद्धांत-संचार की प्रक्रिया तभी सफल हो सकती है जब प्राप्तकर्ता प्रेषित संदेश का सही एवं उचित अर्थ निरूपण करके संचारक को प्रतिपुष्टि प्रदान करें क्योंकि प्रतिपुष्टि के द्वारा संचारक को इस बात का ज्ञान होता है कि जिस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु संदेश को प्रेषित किया गया है वह सफल हुआ है अथवा नहीं ।

     

    6.   आधुनिक समय में संचार के साधन के प्रकार नाम

     

    जैसे-जैसे विज्ञान का विकास होने लगा नये नये संचार उपकरण जैसे तार, टेलीग्राम, दूरभाष, रेडियो, टेलीवीजन, इंटरनेट, मोबाइल फोन का अविष्कार हो गया और अब हम सभी संचार के साधनों पर पूरी तरह से निर्भर हो गये है।

    अब विज्ञान ने इतना विकास कर लिया है कि दुनिया में किसी भी व्यक्ति से तुरंत बात की जा सकती है। इतना ही नही विडियो कालिंग करके आमने सामने देखते हुए भी बात की जा सकती है। पहले लोग संचार के लिए चिट्ठियां लिखते थे।

     

    ·      रेडियो

    ·      टेलीवीजन

    ·      इंटरनेट, ई-मेल

    ·      लैंडलाइन

    ·      मोबाइल फोन

    ·      टेलीग्राम

    ·      पेजर

    ·      फैक्स

    ·      विडियो कालिंग

    ·      विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग

    ·      मुद्रण माध्यम (Published means of communication) जैसे- समाचार पत्र (अखबार), पत्रिकाएँ, पुस्तकें, जर्नल, पैम्फलेट

    ·      इलेक्ट्रोनिक माध्यम (Electronic means of communication) जैसे रेडियो, टेलीवीजन, इंटरनेट, ई-मेल, लैंडलाइन और मोबाइल फोन, टेलीग्राम, पेजर, फैक्स, वीडियो कालिंग, विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग,

     

    1.   टेलीवीजन

    यदि कहा जाये कि आधुनिक समय में टेलीवीजन बेहद लोकप्रिय संचार का साधन है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नही होगी। इसका आविष्कार 1920 में किया गया था। फिलोफार्नवर्थ ने पहले टेलीवीजन का आविष्कार 25 अगस्त 1934 को किया। यह मनोरंजन का बहुत बड़ा साधन है। बच्चे से लेकर वयस्कों को टेलीवीजन देखना बहुत पसंद है। इसके द्वारा दूर के चित्रों, विडियो को अपने घर में बैठकर ही बड़ी आसानी से देखा जा सकता है। इसके द्वारा हमे नई नई खबरे मिलती रहती हैं।

    2.   टेलीफोन / दूरभाष Telephone

    ऐलेक्ज़ैन्डर ग्राहम बेल ने अपने सहायक टॉमस वाटसन की मदद से टेलीफोन का अविष्कार 10 मार्च 1876 को किया था। इसके जरिये हम किसी दूर बैठे व्यक्ति से बात कर सकते हैं। वर्तमान समय में ये संचार का बहुत प्रसिद्द माध्यम है। पहला टेलीफोन न्यूयॉर्क और शिकागो के बीच 1892 में लगाया गया था।

    3.   मोबाइल फोन Mobile Phone or Smartphone

    आज हम इसके बिना घर से नही निकल सकते है। यह संचार का माध्यम अत्यंत प्रसिद्द है। बच्चे, वयस्क, बूढ़े सब मोबाइल फोन के दीवाने हो गये हैं। आज नये नये फोन हर दिन देश में लांच होते रहते हैं। पहले मोबाइल फोन का आविष्कार मोटोरोला कम्पनी के डॉ मार्टिन कूपर ने 1973 में किया था। जापानी कम्पनी NTT ने दुनिया की पहली सेल्यूलर फोन सेवा टोक्यो में शुरू की थी।

    4.   विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग Video Conferencing

    इसके द्वारा दुनिया में कहीं भी किसी व्यक्ति से आडिओ विडियो सुविधा के साथ बात की जा सकती है। आज के समय में यह बेहद लोकप्रिय हो गया है। आज लोग इनका उपयोग निजी एवं कॉमर्शियल जरूरतों के लिए कर रहे हैं। विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये आज कम्पनी किसी अभ्यर्थी का इंटरव्यू दूर से ही ले सकती हैं।

    आजकल अदालतें भी मुकदमे के लिए इसका इस्तेमाल कर रही हैं। फोन या कम्प्यूटर की मदद से इसमें आमने सामने किसी दूर बैठे व्यक्ति से बात की जा सकती है। 1920 के दशक में AT&T कम्पनी के बेल लैब्स और जॉन लोगी बेयर्ड से इसका अविष्कार किया था।

    5.   ई-मेल E-mail

    आज ई-मेल एक बेहद लोकप्रिय संचार का साधन है। यह निशुल्क होता है, घर बैठे हम अपने प्रियजनों को ई-मेल लिखकर हालचाल पता कर सकते हैं। आजकल सरकारी, प्राइवेट कम्पनियां ई-मेल के जरिये अपने कर्मचारियों से सम्पर्क में रहती हैं। ई-मेल का आविष्कार शिव अय्यादुरई नामक भारतीय ने 1978 में अमेरिका में किया था।

    6.   इंटरनेट Internet

    आज के समय में जिस व्यक्ति के पास इंटरनेट की सेवा नही होती है उसे पिछड़ा माना जाता है। इसके जरिये हम किसी को संदेश भेज सकते हैं। किसी भी चीज के बारे में इंटरनेट पर जानकारी ले सकते हैं। इसके द्वारा किसी को फोन कर सकते हैं। इंटरनेट का अविष्कार 1969 में अमेरिकी रक्षा विभाग DOD (Department of Defense) द्वारा पहली (ARPANET) बार किया गया था।

    7.   कम्प्यूटर Computer

    आज हम पूरी तरह से कप्यूटर पर आश्रित हो गये हैं। घर से लेकर ऑफिस में आज कम्प्यूटर देखा जा सकता है। घर में हम इस पर टाइपिंग, टिकट खरीदने, लोगो से सम्पर्क करने का काम करते हैं। जबकि ऑफिस में हम कम्पनी की सभी फाइलों को कम्प्यूटर में रखते है।

    पहले के जमाने में व्यापार के बहीखाते, रिकोर्ड्स मोटे-मोटे रजिस्टर में लिखे जाते थे जिनको संभाल पर रखना बहुत मुश्किल काम था। अब ऑफिस के सभी रिकॉर्ड कप्यूटर में रखे जाते हैं। पहले कम्प्यूटर का अविष्कार चार्ल्स बेवेज ने 1822 में किया था। वो एक महान गणितज्ञ और दार्शनिक थे।

    8.   भारतीय डाक प्रणाली

    इसकी शुरूआत अधिनियम 1854 के अन्तर्गत लार्ड डलहौजी के काल में 701 डाकघरों के नेटवर्क के साथ की गयी । इसी वर्ष में रेल डाक सेवा का भी आरम्भ हुआ । वर्तमान समय में भारतीय डाक प्रणाली कुल 1.5 लाख से भी अधिक डाकघरों के जालतंत्र के साथ विश्व की समस्त डाक प्रणालियों में प्रथम स्थान पर है ।

     

     

    9.   दूरसंचसार

    एलेक्जेंडर ग्राहमबेल द्वारा टेलीफोन के आविष्कार के साथ ही एक नवीन दूरसंचार प्रणाली का जन्म हुआ , जिसने सूचना संचार की श्रेणी में एक क्रांति का प्रादुर्भाव किया । वर्तमान समय में मोबाइल फोन का प्रयोग इस क्रम में एक नवीन युग का निर्माण कर रहा है , जिससे मात्र सूचना ही नहीं , संबंधों को मजबूत करने और नवीन जानकारियों को मात्र एक सेकेण्ड में उपलब्ध करा कर शिक्षा प्रदान करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहा है ।

    10. रेडियो

    इसके अन्तर्गत सभी सेवाएं जैसे शॉर्ट वेव रेडियो , एफ एम , टीवी , कार्डलेस फोन , जीपीएस , नेवीगेशिन , सेवा , सेल फोन , उपग्रह फोन सेवा , सैटेलाईट रेडियो , ब्लूटुथ , वाई - फाई इत्यादि । सभी को सम्मिलित किया जा सकता है

     

    संचार के साधनों से लाभ Advantages of means of Communication

    इससे अनेक प्रकार के लाभ है। अपने प्रियजनों से बात करने के लिए इंतज़ार नही करना पड़ता है। आधुनिक संचार के साधन बहुत ही सस्ते है। किसी भी वर्ग का व्यक्ति इनका लाभ उठा सकता है। आजकल व्यापारी अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए पूरी तरह संचार के साधनों जैसे फोन, इंटरनेट, कम्प्यूटर, फैक्स, ई-मेल जैसी सुविधाओं पर आश्रित हो चुके है।

    सरकारी तंत्र भी इसका बढ़ चढ़कर इस्तेमाल कर रहा है। आजकल विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिये किसी विभाग के काम की जांच की जाती है। सभी सरकारी विभाग आजकल ई-मेल की सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। सूचनाओं का आदान प्रदान ई-मेल के जरिये कर रहे हैं।

     

    1.   शिक्षा के क्षेत्र में सूचना संचार का महत्व

    सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी एक व्यापक क्षेत्र है जिसमें सूचना के संचार के लिये हर तरह की प्रौद्योगिकी समाहित है। यह वो प्रौद्योगिकी है जो कि सूचना के संचालन (रचना, भंडारण और उपयोग की योग्यता रखता है तथा संचार के

    विभिन्न माध्यमों (रेडिया टेलिविजन, सेल फोन, कंप्यूटर और नेटवर्क, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर, सेटेलाइट सिस्टम, विभिन्न सेवाओं और अनुप्रयोगों) से सूचना के प्रसारण की सुविधा प्रदान करता है। आई.सी.टी. कई लोगों के जीवन का अविभाज्य तथा स्वीकृत अंग बन गया है। कृषि, स्वास्थ्य, शासन प्रबन्ध और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में के विकास का

     

     

    प्रभाव है। आई.सी.टी. एक विविध संग्रह है जिसमें विभिन्न प्रौद्योगिकी उपकरण निहित हैं। साथ ही साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग और इलेक्ट्रॉनिक मेल आदि जैसे प्रोटोकॉल और सेवाएँ भी सम्मिलित हैं। आई.सी.टी. एक प्लंबिंग प्रणाली की तरह है जहाँ सूचना (संग्रहित पानी) सूचना प्रौद्योगिकी (भण्डारण टंकी) में संचयित होती है तथा संचार प्रौद्योगिकी (पाइप) के माध्यम से संचार (बहता हुआ पानी) प्रापक के पास पहुँचता है। उपयोगी डाटा और सूचना के सृजन, संचरण, भंडारण, पुनः प्राप्ति और डिजिटल रूपों में संचालन जैसी आई.सी.टी. की डिजिटल प्रौद्योगिकी सूचना के पूरे चक्र में प्रयोग में लाई जाती है। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के विभिन्न घटक हैं-

     



     

    1.       कम्प्यूटर हार्डवेयर प्रौद्योगिकी - इसके अन्तर्गत माइक्रो-कम्प्यूटर, सर्वर, बड़े मेनफ्रेम कम्प्यूटर के साथ-साथ इनपुट, आउटपुट एवं संग्रह करने वाली युक्तियाँ आती हैं।

    2.       कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी - इसके अंतर्गत ऑपरेटिंग सिस्टम वेब ब्राउजर डाटाबेस प्रबन्धन प्रणाली (DBMS) सर्वर तथा व्यापारिक, वाणिज्यिक सॉफ्टवेयर आते हैं।

    3.       दूरसंचार व नेटवर्क प्रौद्योगिकी - इसके अन्तर्गत दूरसंचार के माध्यम, प्रोसेसर तथा इंटरनेट से जुड़ने के लिये तार या बेतार पर आधारित सॉफ्टवेयर, नेटवर्क-सुरक्षा, सूचना का कूटन (क्रिप्टोग्राफी) आदि हैं।

    4.       मानव संसाधन - तंत्र प्रशासक (System Administrator) नेटवर्क प्रशासक (Network Administrator) आदि।

     

    सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की महत्ता निम्नलिखित है-

    1.       सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी, सेवा अर्थतंत्र (Service Economy) का आधार है।पिछड़े देशों के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिये सूचना प्रौद्योगिकी एक उपयुक्त तकनीक है।

    2.       गरीब जनता को सूचना-सम्पन्न बनाकर ही निर्धनता का उन्मूलन किया जा सकता है।

    3.       सूचना-संपन्नता से सशक्तिकरण होता है।

    4.       सूचना तकनीकी, प्रशासन आर सरकार में पारदर्शिता लाती है, इससे भ्रष्टाचार को कम करने में सहायता मिलती है।

    5.       सूचना तकनीक का प्रयोग योजना बनाने, नीति निर्धारण तथा निर्णय लेने में होता है।

    6.       यह नये रोजगारों का सृजन करती है।

     

    उच्च शिक्षा में आई.सी.टी. का बहुत महत्त्व है। निवेश से लेकर प्रबंधन, दक्षता, शिक्षा शास्त्र, गुणवत्ता, अनुसंधान और नवाचार के प्रमुख मुद्दों से निपटने के लिये इस्तेमाल किये जाने वाली प्रौद्योगिकियों तक, उच्च शिक्षा में आई.सी.टी. के परिचय से पूरी शिक्षा प्रक्रिया पर गहरा प्रभाव पड़ा है।

     

    उच्च शिक्षा में आई.सी.टी. के अभिग्रहण से निम्नलिखित सुविधाएँ प्राप्त होती हैं-

     

    1.       दूरवर्ती स्थानों में पढ़ाई की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है।

    2.       उच्च शिक्षा संस्थानों में अधिक पारदर्शिता प्रणाली लाने से उनकी प्रक्रियाओं और अनुपालन मानदंडों को मजबूती मिलती है।

    3.       यह छात्रों के प्रदर्शन, नियुक्ति, वेबसाइट एनालिटिक्स, और ब्रांड के ऑडिट के लिये सोशल मीडिया मेट्रिक्स का विश्लेषण करने के लिये प्रयोग किया जाता है।

    4.       इंटरनेट (वर्चुअल क्लास रूम), उपग्रह और अन्य माध्यमों द्वारा पाठ्यक्रम वितरण के साथ दूरस्थ शिक्षा सुविधाजनक बना दी गयी है।

     

    शिक्षण में कम्प्यूटर आधारित शिक्षा तकनीकों का उपयोग भारत की प्रसिद्ध शिक्षा प्रणाली और संस्थानों द्वारा अपनाया गया है। शब्दों और प्रतीकों की विविधता कम्प्यूटर की महान शक्ति है जो शैक्षणिक प्रयास का केंद्र है। ई-लर्निंग और दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों में ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से शिक्षण अधिक रोचक और आसान हो रहा है। इंटरनेट तथा वर्ल्ड वाइड वेब के माध्यम से शिक्षक अपने विद्यार्थियों तक पहुँच सकते हैं और उनको घर बैठे पढ़ा सकते हैं। इंटरनेट मानव ज्ञान का एक उच्चतम संग्रह है। आई.सी.टी. डिजिटल पुस्तकालय जैसे डिजिटल संसाधनों के सृजन की अनुमति देता है, जहाँ विद्यार्थी, शिक्षक और व्यवसायी शोध सामग्री तथा पाठ्यक्रम सामग्री तक पहुँच सकते हैं। आई.सी.टी. शैक्षणिक संस्था के दिन-प्रतिदिन के प्रशासनिक गतिविधियों को आसान और पारदर्शी तरीके से नियंत्रित करने तथा समन्वय और निगरानी के लिये अवसर प्रदान करता है। पंजीकरण/नामांकन, पाठ्यक्रम

    आवंटन, उपस्थिति की निगरानी, समय सारिणी/वर्ग अनुसूची, प्रवेश के लिये आवेदन, छात्रों के दाखिले में जाँच इस तरह की जानकारियाँ ई-मीडिया द्वारा पाई जा सकती हैं।

    .आई.सी.टी. के सन्दर्भ में एक खोजपूर्ण प्रयास की आवश्यकता है। प्रेरणा शक्ति को प्रोत्साहित करने का यह सही समय है क्योंकि आशा है कि आई.सी.टी. के परिपालन से जीवन के हर क्षेत्र में प्रबल उन्नति को प्राप्त किया जा सकता है।

    7.  मॉडुलन (मॉड्युलेशन)

    मॉडुलन (मॉड्युलेशन) एक वेवफॉर्म के संबंध में दूसरे वेवफॉर्म से अलग करने की प्रक्रिया है। दूरसंचार में अधिमिश्रण का इस्तेमाल संदेश भेजने के लिए होता है, लेकिन एक संगीतकार स्वर-सामंजस्य के लिए किसी वाद्ययन्त्र के स्वर की मात्रा, उसका समय या टाइमिंग और स्वराघात को अलग करने में इसका उपयोग करता है। अक्सर उच्च आवृति सीनूसोइड वेवफॉर्म का इस्तेमाल लो-फ्रीक्वेंसी संकेत के कैरियर संकेत के रूप में होता है। साइन वेव के तीन प्रमुख मापदंड हैं - उसका अपना आयाम ("मात्रा"), उसके चरण ("समय") और उसकी आवृत्ति ("पिच"), एक मॉड्युलेटेड सिंग्नल प्राप्त करने के लिए इन सभी संचार संकेत (संकेत) को कम फ्रीक्वेंसी के आधार पर संशोधित किया जा सकता है।

    जो उपकरण अधिमिश्रण को अंजाम देता है मॉड्युलेटर कहलाता है और जो उपकरण विपरीत क्रिया करता है डिमॉड्युलेटर (लेकिन कभी-कभी संसूचक या डिमोड) कहलाता है। जो उपकरण दोनों ही तरह का कार्य कर सकता है वह मॉडेम कहलाता है (जिसे संक्षेप में "मॉड्युलेटर- डिमॉड्युलेटर").

    8.   डाटा प्रेषण सेवा (Data Transmission Service)

    भारत में प्रमुख डाटा प्रेषण सेवा प्रदाता जिन्हें Common Carriers भी कहते हैं , हैं -

    1.       ( VSNL ) विदेश संचार निगम लिमिटेड

    2.       ( BSNL ) भारत संचार निगम लिमिटेड

    3.       ( MTNL ) महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड

    इनके द्वारा प्रदत्त मुख्य सेवाएं हैं

    1.     डायल - अप - लाइन ( Dialup Line ) :

    इसे स्विच्ड लाइन भी कहते हैं तथा इसका उपयोग टेलीफोन की तरह नंबर डायल कर संचार स्थापित करने में किया जाता है ।

     

    2.     लीज्ड लाइन ( Leased Line ) :

    इसे व्यक्तिगत या सीधी लाइन ( Private or dedicated line ) भी कहते हैं । इसमें दो दूरस्थ कम्प्यूटरों को एक खास लाइन से सीधे जोड़ा जाता है । इसका प्रयोग आवाज और डाटा ( Voice and data ) दोनों के लिए किया जा सकता है । इस सेवा का मूल्य लाइन की क्षमता , जिसे बॉड या बीपीएस ( Baud or bits per sec ) में मापते हैं , और दूरी पर निर्भर करता है ।

     

    3.     आईएसडीनएन ( ISDN- Integrated Services Digital Network ) :

    यह डिजिटल टेलीफोन व डाटा हस्तांतरण सेवा प्रदान करता है । चूंकि डाटा हस्तांतरण डिजिटल रूप में होता है , इसलिए इसमें मॉडलेम की जरूरत नहीं रहती तथा शोर भी नगण्य होता है ।

     

    9.   सूचना संचार प्रौद्योगिकी की उपयोगिता

    ·      सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से आज ई - कॉमर्स , ई - प्रशासन ई - रजिस्ट्रेशन , ई - मेल , ई - बैंकिंग , ई - सर्विस , ई - चौपाल ई - मैरिज , ई - होटल , स्मार्ट हाउसेज , टेली मेडिसीन , परीक्षा परिणाम इत्यादि गतिविधियाँ सरल एवं सुगमता के साथ सम्पादित की जा रही है ।

    ·      ई - कॉमर्स तथा इंटरनेट के माध्यम से , सरकार तथा नागरिकों के मध्य विश्वसनीय सूचनाओं को प्रदान करने एवं प्राप्त करने से सहयोग तथा सरकारी तंत्र ( Government system ) को विश्वसनीय बनाने ( To mackerel able ) की महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया गया है

    ·      ई - बैंकिंग के द्वारा किसी भी बैंक के अकाउंट अथवा खाते में धन का लेन - देन किया जा सकता है ।

    ·      इसी प्रकार से चिकित्सा प्रणाली , शिक्षा प्रणाली , अंतरिक्ष ज्ञानार्जन प्रणाली , अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में भी सूचना प्रौद्योगिकी का अतुल्यनीय योगदान है । सूचना संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में प्रचुरता से किया जा रहा है , जिसके परिणम में नित्य नवीन जानकारियों के द्वारा देश के विकास में नवीन उपलब्धियाँ हासिल कर पाना संभव हो सकता है ।

     

    10.          सूचना संचार प्रौद्योगिकी के लाभ

    शिक्षा के क्षेत्रों में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के लाभ विभिन्न रूपों में परिलक्षित है , जो इस प्रकार हैं :

    ·      संचार की तीव्र गतिशीलता : संचार में प्रौद्योगिकी के उपयोग से संचार की गतिशीलता बढ़ती है , जिसके परिणाम में यह अपनी बात , विचार तथा शिक्षा क्षेत्रों में ज्ञान और जागरूकता ( awareness ) को विद्यार्थियों तथा अन्य जन तक पहुँचाने में एक साधन के रूप में उपलब्ध हुआ है ।

    ·      वैश्वीकरण को प्रोत्साहन : संचार जगत में प्रौद्योगिकी के द्वारा वैश्विक रूप , विचारों , ज्ञान , जागरूकता तथा शिक्षा के क्षेत्र में विकास संभव हो सका है । वर्तमान समय में हम अपने देश की शिक्षा प्रणाली को अन्य देशों की तुलना में और बेहतर कैसे बना सकते हैं , इसका ज्ञान हमें सूचना प्रौद्योगिकी ( Information Technology ) के प्रयोग से ही मिलता है । अत : इस प्रकार हम देश की शिक्षा प्रणाली ही नहीं बल्कि अन्य नीतियों तथा विकासवादी परंपराओं को भी वैश्विक के अनुसार उपयोगी तथा आधुनिक बना सकते है ।

    ·      व्यापक रूप में होना : तकनीक से प्राप्त संचार की सुविधाओं का स्वरूप अत्यंत व्यापक हो गया है । विश्व के किसी भी क्षेत्र में सूचनाएं समयानुकूल एवं प्रभावी रूप से पहुँचाई जा सकती है । अत : यह कहा जा सकता है कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से शिक्षा को बहुत ही सरलतम एवं अत्यंत व्यापक रूप में पहुँचाया जा सकता है जो कि शिक्षा को घर बैठे उपलब्ध कराने की क्षमता रखता है । इसमें ऑडियो - वीडियो की सहायता से शिक्षा उपलब्ध कराई जा सकती है ।

    ·      प्रभावी तथा न्यूनतम आर्थिक निर्भरताः प्रौद्योगिकी के माध्यम से सूचनाओं को भेजना अत्यधिक प्रभावी तथा न्यूनतम खर्चीला होता है । शिक्षा के अंतर्गत ज्ञान को सर्वसुलभ तथा जन सामान्य के लिये उपयोगी बनाने हेतु प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका है ।

    ·      जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था की बात हो । यहां शहरों की अपेक्षा ग्रामीण जनसंख्या अधिक है । इस क्रम में सरकार प्रभावी तथा कम खर्चीली नीतियों तथा प्रौद्योगिकी की सहायता से सभी के लिए सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी को उपलब्ध करा सकती है ।

     

     

     

     

     

    आलोक वर्मा

    Blogger/Agriculture Expert

    MSc Ag, Med

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