प्रकृतिवाद ( Naturalism )
अर्थ एवं परिभाषाएं
प्रकृतिवाद प्रकृति को मूल तत्व मानता है यह अलौकिक और
पारलौकिक को न मानकर प्रकृति को ही पूर्ण वास्तविकता स्वीकार करता है । इस दर्शन
के अनुसार प्रत्येक वस्तु प्रकृति जन्म लेती है और फिर उसी में विलीन हो जाती है
प्रकृतिवादी इन्द्रियानुभूत ज्ञान को ही सच्चा ज्ञान मानते तथा उनके अनुसार सच्चे
ज्ञान की प्राप्ति के लिये मनुष्य को स्वयं निरीक्षण - परीक्षण करना चाहिए ।
स्पष्ट है कि
प्रकृतिवाद के अनुसार प्राकृतिक पदार्थ एवं क्रियाएँ ही सत्य हैं । प्रकृतिवादियों
के मतानुसार मनुष्य की अपनी एक प्रकृति होती है जो पूर्णरूप से निर्मल है । उसके
अनुकूल आचरण करने में उसे सुख एवं संतोष प्राप्त होता है । तथा प्रतिकूल आचरण करने
पर उसे दुःख और असंतोष का अनुभव होता है , अतः उनके
अनुसार मनुष्य को अपनी प्रकृति के अनुकूल ही आचरण करना चाहिए ।
दूसरे शब्दों में , प्रकृतिवादी
मनुष्य को अपनी प्रकृति के अनुकूल आचरण करने की स्वतंत्रता देते हैं तथा वे उसे
किन्हीं सामाजिक नियमों एवं आध्यात्मिक बन्धनों में जकड़कर नहीं रखना चाहते । उनका
मत है कि मनुष्य उन्हीं कार्यों को करेगा जिन्हें करने से उसे सुख की प्राप्ति
होगी तथा जिन्हें करने से उसे दुख अनुभव होगा , उन्हें वह
स्वयं तिलान्जलि दे देगा । इस प्रकार वे प्राकृतिक नैतिकता के पक्षधर हैं ।
प्रकृतिवाद के सम्बन्ध में कुछ प्रमुख परिभाषायें इस प्रकार हैं
जेम्स वार्ड : “ प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जो
प्रकृति को ईश्वर से अलग करती है , आत्मा को
पदार्थ अथवा भौतिक तत्व के अधीन मानती है और अपरिवर्तनशील नियमों को सर्वोच्च
मानती है । " " Naturalism is the doctrine which separates nature from
God , subordinates spirit to matter and set up unchangeable laws as supreme .
" -James Ward
जॉयस : "
प्रकृतिवाद वह विचारधारा है जिसकी प्रमुख विशेषता आध्यात्मिकता को अस्वीकार करना
है अथवा प्रकृति एवं मनुष्य के दार्शनिक चिंतन में उन बातों को स्थान देना है जो
हमारे अनुभवों से परे नहीं है । " "
Naturalism is a system whose silent character istic is the
exclusion of whatever is spiritual or indeed whatever is transcendental of
experience from our philosophy of Nature and man . " -Joyce
आर.बी. पैरी : “ प्रकृतिवाद विज्ञान नहीं है , वरन् विज्ञान के बारे में
दावा है । अधिक स्पष्ट रूप से यह इस बात का दावा करता है कि वैज्ञानिक ज्ञान
अन्तिम है जिसमें विज्ञान से बाहर दार्शनिक ज्ञान का कोई स्थान नहीं है । "
" Naturalism
is not science but an assertion about science . More specifically it is the
assertion that scientific knowledge is final , leaving no room for extra -
scientific or philosophical knowledge . " " -R.B. Perry
जे.एस. रॉस : "
प्रकृतिवाद एक ऐसा शब्द है जिसका शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्तों में उन शिक्षा -
प्रणालियों के लिये प्रयोग किया जाता है जो स्कूलों और पुस्तकों पर आधारित होने के
बजाय शिक्षार्थी के वास्तविक जीवन को क्रियात्मक रूप से प्रभावित करने का प्रयास
करती है । "
" Naturalism
....... is a term loosely applied in educational theory to system of training
that are not dependent on schools and books but on the manipulation of the
actual life of the educated. " -J.S. Ross
शिक्षा में वैज्ञानिक प्रकृति का विकास
जीवन को सुखद , आसान व पूर्ण बनाने के
लिए पाठ्यक्रम में विज्ञान के विषयों को शामिल करना तथा समस्याओं के समाधान के लिए
कारण एवं प्रभाव के सम्बन्धों के आधार पर वैज्ञानिक उपागम अपनाना वैज्ञानिक
प्रवृत्ति कहलाता है । जब इस प्रवृत्ति का शिक्षा में प्रयोग किया जाता है तो
शिक्षा की प्रक्रिया में निम्न विशेषत जुड़ जाती हैं
1. यह साहित्यिक विषयों के अध्ययन का
विरोध करती है क्योंकि यह अध्ययन हमें कोई भौतिक सुख नहीं दे सकता ।
2. बिना प्रायोगिक ज्ञान के केवल
सैद्धान्तिक ज्ञान बेकार
3. यह विधि की अपेक्षा पाठ्यक्रम को
वरीयता देती है ।
4. केवल प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययन ही
जीवन को आनन्ददायक एवं सुखद बना सकता है । इसलिए विज्ञान की शिक्षा पर अधिक बल हो
।
5. बालक को किसी भी विषय के चयन के लिए
पूरी स्वतंत्रता दी जाये ।
6. छात्रों को पढ़ाने के लिए आगमन विधि
का प्रयोग करना तथा प्रयोगशाला को सैद्धान्तिक ज्ञान के पूरक के रूप में प्रयोग करना
।
प्रकृतिवाद के रूप
1. भौतिक: भौतिक प्रकृति के नियम ही मानव जीवन को संचालित करते
हैं । जैसे सूर्य का उदय या अस्त होना, बादल का पानी बरसाना ,
सूर्य का प्रकाश देना आदि ।
2. यांत्रिक प्रकृतिवाद: मानव आत्मा नहीं वरन् एक मशीन है ।
मस्तिष्क भी एक पदार्थ मात्र है जोकि भौतिक वस्तुओं में परिवर्तन के साथ - साथ
बदलता रहता है । ऐसे में मानव के साथ मशीन जैसा ही व्यवहार करना चाहिये ।
3. जैविक प्रकृतिवाद: मानव निम्न प्राणियों से विकसित होकर अपने
वर्तमान रूप में आया है । मानव व्यवहार का संचालन उसकी मूल प्रवृत्तियों एवं
संवेगों द्वारा होता है । कोई भी व्यक्ति जब इन प्रवृत्तियों से हटकर व्यवहार करता
है तो वह दुखी हो जाता है । शिक्षा के द्वारा इन जन्मजात प्रवृत्तियों को
नियंत्रित किया जा सकता है ।
प्रकृतिवाद के सिद्धांत
1. मस्तिष्क पदार्थ के अधीन काम करता है ।
2. भौतिक जगत ही वास्तविक जगत है ।
3. मूल्यों का आवश्यकताओं के संदर्भ में निर्माण किया जाता है ।
4. व्यक्ति को समाज पर वरीयता दी जाये ।
5. पराप्राकृतिक वस्तुओं का कोई अस्तित्व नहीं है ।
प्रकृतिवाद का पाठ्यक्रम
इस दर्शन के अनुसार हर
बालक को अपना स्वयं का पाठ्यक्रम चुनने का अधिकार है । और वह प्रकृति के सम्पर्क
में आकर अपने अनुभवों से सीखेगा । हर वह विषय जो बालक के वर्तमान जीवन को सुखी बना
सके , बालक उसे
चुन सकता है । यह सारे विषय प्रकृति को समझने में सहायता करने चाहिये ।
रूसो की इमाइल का परिचय
रूसो ने अपने शैक्षिक
विचारों को इसी पुस्तक किया है । यह एक उपन्यास है , जिसका नायक ' इमाइल ' तथा नायका सोफिया है ।
अपनी इस पुस्तक में रूसो ' इमाइल को समाज व संस्कृति से दूर रखता है और उसे प्राकृतिक वातावरण में एक
अच्छे अध्यापक के मार्गदर्शन में छोड़ देता है और इमाइल को प्राकृतिक वातावरण में
शिक्षा दी जाती है
इस पुस्तक में पांच
अन्याय हैं-
प्रथम चार अध्याय में
इमाइल की शैशवावस्था , बाल्यावस्था , यौवनावस्था तथा युवावस्था में शिक्षा की चर्चा है और अन्तिम अध्याय सोफिया की
शिक्षा एवं प्रशिक्षण का उल्लेख करता है ।
लोगों ने उसकी इस पुस्तक
का घोर विरोध किया । फ्रांस तथा स्विट्जरलैंड में इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया
गया और यूरोप के अनेकों स्थानों पर इसे जला दिया गया इस सबके परिणामस्वरूप रूसो को
1766 में फ्रांस छोड़ कर इंग्लैंड भागना पड़ा ।
रूसो का प्रकृतिवाद
रूसो के प्रकृतिवाद के
तीन रूप हैं । जो निम्न हैं
1. सामाजिक प्रकृतिवाद: अर्थात् शिक्षा
को सामाजिक परिवर्तन के उपकरण के रूप में प्रयोग किया जा सकता है । कोई भी व्यक्ति
मानव व नागरिक दोनों एक साथ नहीं बन सकता । मानव बन कर ही व्यक्ति मानव की
वैयक्तिकता का सम्मान कर सकता है ।
2. मनोवैज्ञानिक प्रकृतिवाद: अर्थात्
प्रत्येक बालक को उसकी मूल प्रवृत्तियों के अनुसार विकसित होने का अवसर दिया जाना
चाहिये । दूसरों के सम्पर्क में आने से प्राप्त अनुभव अप्राकृतिक होते हैं जोकि
हानिकारक होते हैं ।
3. भौतिक प्रकृतिवाद भौतिक वस्तुओं जैसे
पशु , पक्षी , पहाड़ , नदी , आदि के सम्पर्क में आने का अवसर दिया जाना चाहिये ।
रूसो की नकारात्मक
नकारात्मक शिक्षा से रूसो
का तात्पर्य यह है कि बालकों को स्वतंत्र छोड़ा जाये तथा उसकी रुचि व योग्यता के
विपरीत उसे कुछ न पढ़ाया जाये । बोझ डाला जाये । बालक को बुराइयों से बचाने के लिए
उसे बाहर के वातावरण से दूर रखा जाये न कि उसे अच्छी बातों का ज्ञान दिया जाये ।
रूसो एवं महिला शिक्षा
रूसो शिक्षित महिला को प्लेग के समान मानता है ।
रूसो बालकों को तो पूरी स्वतंत्रता देता है किन्तु वह बालिकाओं को पूर्ण नियंत्रण
में रखना चाहता है । वह उनके लिए ऐसी शिक्षा की वकालत करता है जिसके द्वारा वे
पुरुषों की अच्छी सेवा कर सकें । महिलाओं को प्रेम , सम्मान तथा आनन्द प्रदान करना चाहिये
। चूंकि पढ़ने लिखने में उनकी कोई रुचि नहीं होती इसलिए उन्हें ऐसी शिक्षा दी जानी
चाहिये , जिससे वे अपना घर ठीक ढंग से चला सके जैसेकि सिलाई - कढ़ाई , खाना बनाना आदि । धार्मिक
शिक्षा भी उनके ऊपर थोपी नहीं जानी चाहिये । धर्म या दर्शन उन्हें नहीं पढ़ाया
जाना चाहिये , क्योंकि वे उन्हें समझ नहीं सकती ।
रूसो की पुस्तकें
( 1 ) Discourses on the
Science and Arts ( 1750 )
( ii )
Discourses on the origin of inequality among men
( iii )
Discourses of Political Economy
( iv ) The
Social Contracts
( v ) Emile
हरबर्ट स्पेन्सर की पूर्ण मानव की संकल्पना
वह व्यक्ति जिसके अंदर
निम्न पाँच विशेषताएँ पाई जाती हों वह पूर्ण मानव कहलाता है ।
1. आत्य परिरक्षण : प्रकृति ने हर वस्तु को मानव की सेवा एवं परिरक्षण के लिए
बनाया है । इसलिए मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह प्रकृति को समझे और उसके साथ
सहयोग करे । यदि हम प्राकृतिक नियमों पर ध्यान नहीं देते तो हमारा अस्तित्व खतरे
में पड़ जायेगा । परिरक्षण के लिए छात्रों को स्वास्थ्य एवं शरीर विज्ञान के
नियमों की शिक्षा दी जानी चाहिये ।
2. जीविका कमाना : अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए जीविका कमाना आवश्यक है ।
इस काम में विज्ञान हमारी सहायता कर सकता है । कोई भी व्यवसाय ऐसा नहीं है जो बिना
विज्ञान की सहायता के सम्पन्न हो सके । जैसे कृषि , उद्योग , मकान निर्माण आदि सभी में
विज्ञान के ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है ।
3. बच्चों का पालन पोषण : बच्चों के पालन पोषण का
दायित्व अधिकांशतः माता - पिता पर होता है किन्तु यदि माता - पिता शिक्षित एवं
सचेत न हों तो बालकों का व्यक्तित्व नष्ट हो जायेगा । इसलिए बच्चों के पालन पोषण
में स्कूल की भूमिका और बढ़ जाती है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शिक्षा प्राप्त
करना सभी के लिए बहुत आवश्यक है ।
4. नागरिकता : बालक एक समाज में जन्म
लेता है इसलिए उसे यह जानना चाहिये कि समाज व राष्ट्र के प्रति उसका क्या कर्तव्य
है , वह अन्य प्राणियों से किस प्रकार से भिन्न है और प्राकृतिक पर्यावरण के साथ
अनुकूलित होना क्यों आवश्यक है । इन सब प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए मनुष्य को
इतिहास का अध्ययन भी विज्ञान के प्रकाश में करना चाहिये । ऐसा करके ही उसे सच्ची
नागरिकता का ज्ञान हो सकता है ।
5. खाली समय का सही उपयोग : विज्ञान ने
मशीनों का आविष्कार करके मानव जीवन को यांत्रिक बना दिया है इसी कारण से खाली समय
की समस्या भी उत्पन्न हुई है । आज उसके पास बहुत सा समय खाली । इस समस्या को कला , संगीत आदि के अध्ययन
द्वारा हल किया जा सकता है । किन्तु इन विषयों का अध्ययन केवल समय बिताना ही माना
जायेगा ।
स्पेन्सर के शिक्षण सूत्र
1. सरल से कठिन की ओर ।
2. ज्ञात से अकात की ओर - बालक जो जानते
हैं उसके आधार जो नहीं जानते बताया जाये ।
3. निश्चित से अनिश्चित की ओर - अर्वात
पर्यावरण के अनुभवों के माध्यम से पढ़ाना ।
4. मूर्त से अमूर्त की ओर - शिक्षण में
सहायक सामग्री का प्रयोग ।
5. प्रत्यक्ष अनुभव से विवेक की ओर ।
6. मानव विकास के चरणों के आधार पर
शिक्षण ।
7. रुचि के आधार पर शिक्षण ।
प्रकृतिवादी शिक्षा के उद्देश्य
शिक्षा के उद्देश्य के
सम्बन्ध में प्रकृतिवादियों के बीच पूर्ण सहमति नहीं है , विभिन्न दार्शनिकों ने
शिक्षा के भिन्न - भिन्न निम्न उद्देश्य बतलाये हैं
1. बालक को जीवन के संघर्ष के लिए तैयार
करना अर्थात् बालक के अंदर ऐसी क्षमताएँ विकसित करना कि वह पर्यावरण में पूर्ण रूप
से अनुकूलित हो सके ।
2. आनन्द की प्राप्ति : भौतिक प्रकृतिवाद
अनुसार बालक को इस प्रकार विकसित किया जाना है कि वह अधिक - से - अधिक सुख समृद्धि
प्राप्त कर सके
3. मूल प्रवृत्तियों को सुलाना : शिक्षा
का उद्देश्य केवल आनन्द की प्राप्ति ही नहीं है बल्कि मूल प्रवृत्तियों को सुलाना
भी है ताकि मानव प्राकृतिक पर्यावरण को न बिगाड़े ।
4. पर्यावरण के प्रति अनुकूलन : लैमार्क
के अनुसार पर्यावरण सदैव रहने - सहने के लिए अनुकूल नहीं होता शिक्षा का यह
उद्देश्य होता है कि यह बालक की शक्तियों को इस प्रकार से बढ़ाये कि वह पर्यावरण
की विपरीत परिस्थितियों में स्वयं को समायोजित कर सके ।
5. बालक की भौतिक एवं प्राकृतिक शक्तियों
का विकास : स्पेन्सर के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य अनुभव एवं प्रयोगों द्वारा बालक
की स्वाभाविक शक्तियों का विकास करना है । इसलिए बालक को शारीरिक रूप से स्वस्थ
बनाया जाता है तथा उसे विकास का पूरा अवसर दिया जाता है ।
6. स्वाधिगम : पुस्तकीय ज्ञान की अपेक्षा
बालक के लिए अनुभव एवं प्रयोगों द्वारा आत्म अधिगम अधिक महत्वपूर्ण है ।
अरस्तू और शिक्षा
अरस्तू शिक्षा के सामाजिक पहलू के बजाय व्यक्तिगत
पहलू पर बल देता है । उसने व्यक्ति के विकास के तीन चरण बताए है ।
1. शारीरिक विकास की अवधि ( 0-7 वर्ष ) ।
2. गैर तार्किक भूख की अवधि ( 7-20 वर्ष ) ।
3. तर्क विकास की अवधि ( 20 वर्ष से आगे ) ।
अरस्तू की शिक्षा योजना
जहाँ प्लेटो ने समाज के
पृथक - पृथक् वर्गों के लिये भिन्न - भिन्न प्रकार की शिक्षा व्यवस्था की बात की
है , वहाँ अरस्तू प्रत्येक अरस्तू और शिक्षा व्यक्ति को भिन्न - भिन्न आयु में सब
प्रकार की शिक्षा प्रदान करना चाहते हैं । अरस्तू के पाठ्यक्रम के अनुसार , आयु के अनुसार
विद्यार्थियों की शिक्षा का पाठ्यक्रम इस प्रकार है
1. सात वर्ष की आयु तक शिक्षा : अरस्तू अनुसार बालक
की शिक्षा उसकी सात वर्ष की आयु तक घर पर ही होनी चाहिए । उसको ऐसी कहानियाँ सुनाई
जानी चाहिए और ऐसे खेल खिलाये जाने चाहिये कि उसमें आगे चलकर किये जाने वाले कामों
के संस्कार पड़े । उसे दूषित वातावरण में रहने से बचाना चाहिए । घर पर शिक्षा
प्रदान करने से अरस्तू का तात्पर्य यह है कि इस आयु में शिक्षा पर सरकारी नियंत्रण
बिल्कुल न हो , वस्तुतः उन्होंने सात वर्ष की आयु तक बालकों की शिक्षा के देखभाल के लिये
सरकारी निरीक्षकों की नियुक्ति का परामर्श दिया है ।
2. सात से चौदह वर्ष की आयु तक शिक्षा : अरस्तू ने इस
आयु में विद्यार्थियों के शारीरिक गठन की शिक्षा पर विशेष बल दिया है । उनके
अनुसार विद्यार्थियों को इस आयु में शारीरिक व्यायाम व खेल - कूद के द्वारा अपना
शरीर ऐसा बनाना चाहिए जैसा स्पार्टा के लोगों का था । इस आयु में विद्यार्थियों को
शारीरिक व्यायाम व खेल - कूद के अतिरिक्त कुछ अन्य प्रकार की शिक्षा भी दी जाती है
।
3. चौदह से इक्कीस वर्ष की आयु तक शिक्षा : इस काल
में विद्यार्थियों को पढ़ाई - लिखाई , अंकगणित , रेखागणित , चित्रकला व संगीत आदि
विभिन्न विषयों का अध्ययन करना चाहिए । अरस्तू ने संगीत की शिक्षा की व्यापक
व्याख्या की है क्योंकि उसके अनुसार संगीत अवकाश बिताने का सबसे अच्छा साधन है और
उसका चरित्र निर्माण पर भी प्रभाव पड़ता है । संगीत से नैतिक शिक्षा प्रदान करने
में भी सहायता मिलती है ।
अरस्तू द्वारा प्रदत्त
शिक्षा योजना की निम्न विशेषतायें
1. प्रत्येक नागरिक को संविधान के अनुरूप बनाना ।
2. शिक्षा द्वारा राज्य में नैतिक स्तर ऊँचा उठाना ।
3. शिक्षा में संकल्प के प्रशिक्षण द्वारा चरित्र का
विकास करना ।
4. व्यक्ति को सफल शासक बनाना ।
अरस्तू के राजनीतिक विचार
अरस्तू की राज्य के
सम्बन्ध में निम्न मान्यताएँ हैं
1. मनुष्य एक राजनैतिक प्राणी ( Man is a
political being ) : अरस्तू स्वभाव से ही
मनुष्य को एक राजनैतिक प्राणी मानते हैं । उनके शब्दों में , " राज्य जीवन के लिये ही
अस्तित्व में आता है और कल्याणकारी जीवन के लिये ही बना रहता है । "
2. जनतंत्र की अवधारणा ( Cocept
of Democracy ) : अरस्तू ने जनतंत्र को
राज्य का सच्चा रूप बताया । उनके अनुसार , “ जनतंत्र सरकार का वह रूप है जिसमें
निर्धन , जोकि बहुमत का निर्माण करते हैं , सर्वोच्च माने जाते हैं । "
3. सवैधानिक प्रशासन का समर्थन ( Support
to Con stitutional Administration ) अरस्तू ने राज्य में दार्शनिकों के
शासन के स्थान पर संवैधानिक नियमों द्वारा शासन का समर्थन किया क्योंकि इसी के
द्वारा जनता का कल्याण संभव हो सकता है
4. अध्ययन का विस्तृत क्षेत्र ( Wide
Field of Study ) अरस्तू ने राजशास्त्र के
सिद्धान्तों को विभिन्न वास्तविक राज्यों के निरीक्षण पर आधारित करके इस विज्ञान
के अध्ययन के क्षेत्र का विस्तार किया । अरस्तू के अनुसार राजशास्त्र में राज्यों
को चलाने की कला का व्यापक अध्ययन किया जाना चाहिए ।
5. स्वतंत्र अध्ययन ( Independent Study ) : अरस्तू ने नीतिशास्त्र व राजशास्त्र
को पृथक् - पृथक् माना । उन्होंने राजशास्त्र के स्वतंत्र अस्तित्व पर बल दिया ।
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शोध की परिभाषा, प्रकार,चरण पर आधारित