संचार के प्रकार
संचार के कुछ प्रमुख प्रकारों का उल्लेख किया गया है जो संचार की प्रक्रिया को महत्वपूर्ण आधार प्रदान करते हैं-
1. औपचारिक एवं अनौपचारिक संचार
2. अन्तर्वैयक्तिक एवं जन-संचार
3. मौखिक संचार
4. लिखित संचार
5. अमौखिक संचार
6. अन्तर्वैयक्तिक संचार
7. जन-संचार
1. औपचारिक संचार
औपचारिक संचार किसी संस्था में विचारपूर्वक स्थापित की जाती है। किस व्यक्ति को किसको और किस अन्तराल में सूचना देनी चाहिए, यह किसी संस्था में विभिन्न स्तरों पर कार्यरत् व्यक्तियों के मध्य सम्बन्धों को स्पष्ट करने में सहायक होता है। औपचारिक सन्देशवाहन के निर्माण व प्रेषण में अनेक औपचारिक सम्वाद अधिकांशत: लिखित होते हैं।
औपचारिक संचार के लाभ –
· औपचारिक संचार अधिकृत संचार कर्ता के द्वारा सही सूचना प्रदान की जाती है।
· यह संचार लिखित रूप में होता है।
· इस संचार के द्वारा संचार की प्रति पुष्टि होती है।
· यह संचार व्यवस्थित एवं उचित तरीके से किया जाता है।
· यह संचार करते समय संचार के स्तरों के क्रमों का विशेष ध्यान रखा जाता है।
· इस संचार के माध्यम से संचारक की स्थिति का पता सरलता से लगाया जा सकता है।
· इस संचार के द्वारा व्यावसायिक मामलों को आसानी से नियंत्रित एवं व्यवस्थित किया जा सकता है।
· इस संचार के द्वारा दूर स्थापित लोगों से सम्बन्ध आसानी से स्थापित किये जा सकते हैं।
औपचारिक संचार के दोष –
· इस संचार की गति धीमी होती है।
· समान्यतया इस संचार में उच्च अधिकृत लोगों का अधिभार ज्यादा होता है।
· इस संचार में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से संचार की आलोचना नहीं की जा सकती है।
· इस संचार में नियमों का शक्ति से पालन किया जाता है जिसंके कारण संचार में लोचशीलता के अभाव के कारण बाधा उत्पन्न होने की संभावना हमेशा विद्यमान रहती है।
2. अनौपचारिक संचार
अनौपचारिक सन्देश वाहनों में किसी प्रकार की औपचारिकता नहीं बरती जाती। ऐसे सन्देशवाहन मुख्यत: पक्षकारों के बीच अनौपचारिक सम्बन्धों पर निर्भर करते हैं। अनौपचारिक सन्देशवाहन के कुछ उदाहरण है – नेत्रों से किये जाने वाले इशारे, सिर हिलाना, मुस्कराना, क्रोधित होना आदि।
ऐसे संचार का दोष यह होता है कि सावधानी के अभाव में कभी-कभी अफवाहों को फैलाने में सहायक हो जाते हैं।
अनौपचारिक संचार के लाभ –
· इस संचार के द्वारा सौहार्द सम्बन्धी एवं संभावनाओं का आदान प्रदान होता है।
· इस संचार के द्वारा संचार की गति अत्यधिक तेज होती है।
· इस संचार में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से विचारों का आदान-प्रदान किया जाता है।
· इस संचार के माध्यम से सम्बन्धों में व्याप्त तनाव में कमी आती है तथा लोगों के मध्य सांवेगिक सम्बन्ध स्थापित होते हैं।
अनौपचारिक संचार के दोष –
· इस संचार के द्वारा अविश्वसनीय तथा अपर्याप्त सूचना प्राप्त होती है।
· इस संचार में सूचना प्रदान करने का उत्तरदायित्व निश्चित नहीं होता है तथा सूचना किस स्तर से तथा कहाँ से प्राप्त हुई है, का पता लगाना आसान नहीं होता है।
· इस प्रकार का संचार ज्यादातर किसी भी संगठन में समस्या को उत्पन्न कर सकता है।
· इस संचार में सूचना किस स्तर से तथा कहाँ से प्राप्त हो रही है का स्रोत निश्चित नहीं होता है जिसके कारण सूचना के उद्देश्यों की प्राप्ति तथा उसका अर्थ निरूपण करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
3. लिखित संचार
लिखित संचार एक प्रकार औपचारिक संचार है जिसमें सूचनाओं का आदान-प्रदान लिखित रूप में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को प्रेषित किया जाता है इस संचार के द्वारा संचारक को लिखित रूप में प्रेषित किये गये संदेश का अभिलेख रखने में आसानी होती है।
लिखित संचार के द्वारा यह स्पष्ट होता है कि आवश्यक सूचना प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्रदान की गई है। एक लिखित संचार सही, सक्षिप्त, पूर्ण तथा स्पष्ट होता है।
लिखित संचार के साधन-बुलेटिन, हंडै बुक्स व डायरियां, समाचार पत्र, मैगजीन, सुझाव -योजनायें, व्यावहारिक पत्रिकायें, संगठन-पुस्तिकायें संगठन-अनुसूचियाँ, नीति- पुस्तिकायें कार्यविधि पुस्तिकायें, प्रतिवेदन, अध्यादेश आदि।
लिखित संचार के लाभ –
· लिखित सम्प्रेषण की दशा में दोनों पक्षों की उपस्थिति आवश्यक नहीं है
· विस्तृत एवं जटिल सूचनाओं के सम्प्रेषण के लिए यह अधिक उपयुक्त है।
· यह साधन मितव्ययी भी है क्योंकि डाक द्वारा समाचार योजना, दूरभाष पर बात करने की उपेक्षा सस्ता होता है।
· लिखित संवाद प्रमाण का काम करता है तथा भावी संदभोर्ं के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
लिखित संचार के दोष –
· लिखित संचार की दशा में प्रत्येक सूचना को चाहे वह छोटी हो अथवा बड़ी, लिखित रूप में ही प्रस्तुत करना पड़ता है जिनमें स्वभावत: बहुत अधिक समय व धन का अपव्यय होता है।
· प्रत्येक छोटी-बड़ी बात हो हमेशा लिखित रूप में ही प्रस्तुत करना सम्भव नहीं होता।
· लिखित संचार में गोपनीयता नहीं रखी जा सकती।
· लिखित संचार का एक दोष यह भी है कि इससे लालफीताशाही का बढ़ावा मिलता है।
· अशिक्षित व्यक्तियों के लिए लिखित स्म्प्रेषण कोई अर्थ नहीं रखता। मौखिक अथवा लिखित संचार के अपेक्षाकृत श्रेष्ठ कौन है, इसका निर्णय करना एक कठिन समस्या है। वास्तव में इसका उत्तर प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।
4. मौखिक संचार
मौखिक संचार से तात्पर्य संचारक द्वारा किसी सूचना अथवा संवाद का मुख से उच्चारण कर संवाद प्राप्तकर्ता को प्रेरित करने से है। दूसरे शब्दों में, जो सूचनायें या संदेश लिखित न हो वरन् जुबानी कहें या निर्गमित किये गये हो उन्हें मौखिक संचार कहते हैं।
इस विधि के अन्तर्गत संदेश देने वाला तथा संदेश पाने वाले दोनों एक-दूसरे के सामने होते है इस पद्धति में व्यक्तिगत पहुँच सम्भव होती है।
लारेन्स एप्पले के अनुसार, ‘‘मौखिक शब्दों द्वारा पारस्परिक संचार सन्देशवाहन की सर्वश्रेष्ठ कला है।
मौखिक संचार के साधन – आमने सामने दिये गये आदेश, रेडियो द्वारा संचार, दूरदर्शन, दूरभाष, सम्मेलन या साभाएँ, संयुक्त विचार-विमर्श, साक्षात्कार, उद्घोषणाएँ आदि।
मौखिक संचार के लाभ –
· इस पद्धति से समय व धन दोनों की बचत होती है।
· इसे आसानी से समझा जा सकता है।
· संकटकालीन अवधि में कार्य में गति लाने के लिए मौखिक पद्धति एक मात्र विधि होती है।
· मौखिक संचार लिखित संचार की तुलना में अधिक लचीला होता है।
· मौखिक संचार पारस्परिक सद्भाव व सद्विश्वास में वृद्धि करता है।
मौखिक संचार के दोष –
· मौखिक वार्ता को बातचीत के उपरान्त पुन: प्रस्तुत करने का प्रश्न ही नहीं उठता।
· मौखिक वार्ता भावी संदर्भ के लिए अनुपयुक्त है।
· मौखिक सन्देशवाहन में सूचनाकर्ता को सोचने का अधिक मौका नहीं मिलता।
· खर्चीला
· तैयारी की आवश्यकता।
· अपूर्ण।
5. अमौखिक संचार
यह संचार का प्रकार है जो न मौखिक होता है और न ही लिखित। इस संचार में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अमौखिक रूप से सूचना को प्रदान करता है, उदाहरण के रूप में-शारीरिक हाव-भाव के द्वारा। इस संचार में शारीरिक भाव-भंगिमा के माध्यम से संचार को प्रेषित किया जाता है। जिसे प्राप्तकर्ता अमौखिक रूप से सरलता से समझ जाता है, जैसे-चेहरे का भाव, आंखों तथा हाथ का इधर-उधर घूमना आदि के द्वारा भावनाओं, संवेगों, मनोवृत्तियों इत्यादि को असानी से समझ सकता है।
अमौखिक संचार के लाभ –
· इस संचार के द्वारा भावनाओं, संवेगों, मनोवृत्ति इत्यादि को कम समय में प्रेषित किया जा सकता है।
· इस संचार को एक प्रकार से मौखिक संचार का प्रारूप माना जा सकता है जिसमें मौखिक संचार के लाभों एवं दोषों को शामिल किया जा सकता है।
· इस संचार के द्वारा लोगों को प्रेरित, प्रभावित तथा एकाग्रचित किया जा सकता है।
6. अन्तर्वैयक्तिक संचार
अन्र्तवैयक्तिक संचार का एक प्रकार हैं जिसमें संचारकर्ता तथा प्राप्तकर्ता एक-दूसरे के आमने-सामने होते हैं। अन्र्तवैयक्तिक संचार लिखित अथवा मौखिक दोनों रूप में हो सकते हैं, अन्र्तवैयक्तिक संचार के अन्तर्गत लिखित रूप में यथा पत्र, डायरी इत्यादि को शामिल किया जा सकता है जबकि मौखिक संचार में टेलिफोन, आमने-सामने की बातचीत इत्यादि को शामिल कर सकते हैं।
अन्तर्वैयक्तिक संचार के लाभ –
· इस संचार के द्वारा संचारक तथा प्राप्तकर्ता के मध्य सामने-सामने के सम्बन्ध होते हैं। जिसके कारण मौखिक संदेश की गोपनीयता बनी रहती हैं।
· इस संचार में संचारक तथा प्राप्तकर्ता ही होते हैं जिसके कारण सूचना अन्य लोगों के पास नहीं जा पाती है।
7. जन-संचार
जन-संचार, संचार का एक माध्यम हैं जिसके द्वारा कोई भी संदेश अनेक माध्यमों के द्वारा जन-समुदाय तक पहुंचाया जाता है। वर्तमान समय में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो जन-संचार माध्यम से न जुड़ा हो। सच पूछा जाय तो आज के मनुष्य का विकास जन-संचार के माध्यमों द्वारा ही हो रहा है।
जन-समुदाय की आवश्यकताओं को पूरा करने में जन-संचार माध्यमों की बड़ी भूमिका होती है। जो कि सभी वर्ग, सभी कार्य क्षेत्र से जुड़े लोगों तथा सभी उम्र के लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करने में सहायता प्रदान करते हैं वर्तमान समय में जन-संचार के अनेक माध्यम हैं, जैसे-समाचार पत्र/पत्रिकायें, रेडियों, टेलीविजन, इंटरनेट इत्यादि।
संचार के सिद्धांत
संचार की प्रक्रिया विभिन्न अध्ययनों के पश्चात स्पष्ट होता है कि संचार को आधार प्रदान करने के लिए सिद्धांत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
1. उद्देश्यों के स्पष्ट होने का सिद्धांत-संचार की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि संचार के उद्देश्य विशिष्ट एवं स्पष्ट हों जिससे की प्राप्तकर्ता संचार के विषय को सार्थक रूप से समझ सके।
2. श्रोताओं के स्पष्ट ज्ञान का सिद्धांत-संचार की सफलता के लिए आवश्यक है कि संचारक को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि श्रोतागण कैसे हैं जिससे प्रेषित किये जाने वाले विषय को श्रोता के ज्ञान एवं उनकी इच्छा के अनुसार सारगर्भित रूप में प्रेषित किया जा सके। इसके अतिरिक्त इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि संचार को श्रोतागण आसानी से समझ सके।
3. विश्वसनीयता बनाये रखने का सिद्धांत-संचारक के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह समुदाय में अपनी स्थिति प्रास्थिति को बनाये रखे क्योंकि संचारक के द्वारा प्रेषित किये जाने वाला संचार संचारक के सामथ्र्य पर निर्भर करता है यदि समुदाय के लोगों को इस बात का विश्वास होता है कि संचारक समुदाय के हित के लिए संदेश को प्रेषित करेगा।
4. स्पष्टता का सिद्धांत-संचार में प्रयोग की जाने वाली भाषा एवं प्रेषित किये जाने वाला विषय सरल एवं समरूप होना चाहिए जिससे कि संचार को लोग आसानी से समझ सके। संचार करते समय यदि क्लिष्ट भाषा का प्रयोग किया जाता है तो संचार की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
5. शब्दों को सोच-विचार कर प्रेषित एवं संगठित करने का सिद्धांत-संचारक के लिए आवश्यक होता है कि संचार में प्रयोग किये जाने वाले शब्दों का चयन उचित प्रकार से किया जाये तथा विचारों में तारतम्यता निहित हो। यदि संचार करते समय शब्दों का चयन कुछ सोच-समझकर नहीं किया जाता है और शब्दों के मध्य तारतम्यता तथा एकरूपता नहीं होता है तो प्राप्तकर्ता संचार के उद्देश्यों को समझ नहीं पाता है।
6. सूचना की पर्याप्तता का सिद्धांत-संचारक के लिए यह आवश्यक होता है कि संचार करते समय सूचना पर्याप्त रूप में प्रेषित की जाये इसके लिए यह भी आवश्यक होता है कि सूचना किस स्तर पर प्रेषित की जा रही है। सूचना की अपर्याप्तता के कारण प्राप्तकर्ता संचार के उद्देश्यों का अर्थ निरूपण विपरित लगा सकता है जिसके कारण संचार के असफल होने की संभावना उत्पन्न हो जाती है।
7. सूचना के प्रसार का सिद्धांत-संचार की सफलता के लिए आवश्यक होता है कि सूचना का प्रसार सही समय पर, सही परिपेक्ष््र य में, सही व्यक्ति को उचित कारण के संदर्भ में पे्रषित की जाये तथा सूचना प्रसारित करते समय इस तथ्य का भी ध्यान रखा जाय कि सूचना प्राप्तकर्ता कौन है यदि संचारक सूचना प्रेषित करते समय, परिप्रेक्ष्य, उचित व्यक्ति तथा स्पष्ट उद्देश्य का ध्यान नहीं रखता है तो संचार असफल हो जाता है।
8. सघनता एवं सम्बद्धता का सिद्धांत-सफल संचार के लिए आवश्यक है कि सूचना में सघनता एवं सम्बद्धता का तत्व विद्यमान हो, सूचना को प्रदान किये जाने का क्रम 666 क्रियान्वित किया जा सके।
9. एकाग्रता का सिद्धांत-संचार की सफलता के लिए आवश्यक है कि संचारक एवं प्राप्तकर्ता दोनों एकाग्रचित्त होकर कार्य करे। संचारक के लिए आवश्यक है कि संचार प्रेषित करते समय अपनी एकाग्रता को भंग न होने दे तथा प्राप्तकर्ता के लिए भी यह आवश्यक होता है कि वह एकाग्रचित होकर के प्रेषित संचार का अर्थ निरूपण करे।
10. समयबद्धता का सिद्धांत-संचार तभी सफल हो सकता है जब वह उचित तथा निश्चित समय पर किया जाये। संचार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि संचार करते समय संचार के उद्देश्यों की प्राप्ति सही समय पर हो पायेगी अथवा नहीं।
11. पुर्ननिर्देशन का सिद्धांत-संचार की प्रक्रिया तभी सफल हो सकती है जब प्राप्तकर्ता प्रेषित संदेश का सही एवं उचित अर्थ निरूपण करके संचारक को प्रतिपुष्टि प्रदान करें क्योंकि प्रतिपुष्टि के द्वारा संचारक को इस बात का ज्ञान होता है कि जिस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु संदेश को प्रेषित किया गया है वह सफल हुआ है अथवा नहीं ।