शिक्षा तकनीकि के आर्विभाव तथा विकास के साथ शिक्षा की प्रक्रिया में अनेक परिवर्तन हुए तथा नये आयामों का विकास हुआ। पिछले 25 वर्षो के अन्तराल में कक्षा शिक्षा में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए है। छात्रों की उपलब्धियों में स्थान, कक्षा-शिक्षण के स्वरूप, प्रक्रिया, अनुदेशन प्रक्रिया को प्राथमिकता दी गयी है क्योंकि छात्रों की उपलब्धियों इन्हीं पर आश्रित होती है। शिक्षक छात्रों की व्यक्तिगत भिन्नता को शिक्षण में महत्व देते है। व्यक्तिगत भिन्नता को जानते हुए व्यक्तिगत अध्ययन की आवश्यकता होती है।
बालक की भिन्नताओं के होते हुए भी प्रकृति तथा स्वभाव संबंधी सामान्य विशेषताए होती है। बालक के द्वारा अनुभव किये जाने योग्य अमूर्त वस्तुओं के अध्ययन के लिए कतिपय प्रविधियां विकसित की गयी है। इनमें से केस स्टडी प्रमुख है।
आइए जाने केस स्टडी क्या है?
केस स्टडी विधि का सर्व प्रथम प्रयोग फ्रेड्रिक ली प्ले ( Frederic Le Play ) ने सन् 1829 में सामाजिक विज्ञान में किया। वहीं 1967 में बारने ग्लेज़र ( Barney Glaser & Anselm Strauss ) एवं एन्सेलम स्ट्रॉस जैसे समाजशास्त्रियों ने पुनः इसको परिष्कृत रूप में सामाजिक विज्ञान में नवीन सिद्धान्त के रूप में प्रयुक्त किया। वर्तमान में केस स्टडी का सर्वाधिक प्रयोग शिक्षा जगत में किया जा रहा है। आज इसे हम प्राब्लम बेस्ड लर्निंग ( Problem Based Learning ) के रूप में ज्यादा जानते है।
केस स्टडी से तात्पर्य है किसी भी वस्तु, स्थिति का भलीभांति बारीकी से जांच पड़ताल करना व जानना। इसका बुनियादी आधार विद्यार्थी की जिज्ञासु प्रवृत्ति को माना जाता है। दूसरे शब्दों में मनुष्य का सम्पूर्ण ज्ञान उसकी जिज्ञासु प्रवृत्ति का परिणाम है और केस स्टडी किसी ज्ञान, अनुभव को पाने का साधन है। इस विधि में विद्यार्थी की स्वयं समाधान ढूंढने में सक्रिय भूमिका रहती है , जबकि अध्यापक की भूमिका विद्यार्थियों को समस्या से भलीभांति परिचित कराना है।
व्यक्तिगत अध्ययन (केस स्टडी) विषय विशेष (जैसे बालक समूह या घटना) के गुण दोष एवं असामान्यताओं का विश्लेषण है।
व्यक्तिगत अध्ययन अपने में एक पहेली (समस्या) होती है जिसे हल किया जा सकता है। इस पहेली में ब हुत सी सूचनायें समाहित रहती है। इन सूचनाओं का विशलेषण कर हल निकाला जा सकता है। केस स्टडी की विषय वस्तु व्यक्ति, स्थान या सत्य घटना पर आधारित होती है। यह किसी एक इकाई का सम्पूर्ण विश्लेषण होता है।
यंग के अनुसार ‘‘ केस स्टडी किसी इकाई के जीवन का गवेषणा तथा विश्लेषण की पद्धति है चाहें वह एक व्यक्ति, परिवार, संस्था हस्पताल, सांस्कृतिक समूह या सम्पूर्ण समुदाय हो।’’
“अर्थात केस स्टडी, गुणात्मक विश्लेषण का एक रूप है जिसमें किसी व्यक्ति, परिस्थिति या संस्था का बहुत सावधानी तथा पूर्णता के साथ अवलोकन किया जाता है।”
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में शिक्षक का उत्तर दायित्व बढ़ गया है और उसकी स्वतंत्रता कम कर दी गयी है। शिक्षक की भूमिका ‘‘छात्रों के अधिगम’’ के लिए एक व्यवस्थापक की होती है। शिक्षक एक सलाहकार एवं मार्गदर्शक के रूप में होता है। शिक्षक को अपनी कक्षा में समस्यात्मक बालकों से रूबरू होना पड़ता है। ऐसे बालकों के सुधार के लिए शिक्षक को हमेशा तत्पर रहना चाहिए। इसके लिए शिक्षक ‘समस्यात्मक बालक’ के सुधार के लिए उसके पूर्व इतिहास को स्वयं उसके परिवार से, उसके मित्रों से पूछताछ करके तथ्यों का संकलन करता है। इस अध्ययन द्वारा वह उन कारणों को खोजता है। जिसके फलस्वरूप उसका आचरण व व्यवहार असमान्य होता है। प्राप्त कारणों के आधार पर शिक्षक समस्यात्मक बालक का उपचार करता है।
इस प्रकार शिक्षक बालक के ‘समायोजित व्यक्तित्व’ के निर्माण में सहायता करता है। केस स्टडी के लिए सबसे प्रबल तर्क यह है कि किसी भी केस का अध्ययन तब तक पूर्ण नहीं हो सकता जब तक कि हम उसके विभिन्न पहलुओं की उसमें होने वाली अन्तर्क्रियाओं का अध्ययन न करें।